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________________ भावी के गर्भ में २१५ कर वे भी मन ही मन कुछ भाराकान्त हो गये । उन्हे इस स्थिति मे देखकर भगवान ने उनके हृदय मे आशा का सचार करते हुए कहा "किन्तु कृष्ण, तुम चिन्ता मे न पडो । यह तो भावी है और ऐसा ही होगा। लेकिन तुम्हारा आगे का जीवन सुखद है।" कृष्ण ने उत्साहित होकर पूछा"यह कैसे होगा, भन्ते । मै तो सच ही निराश होने लगा था।" भगवान ने बताया"शतद्वार नगर मे एक अमम तीर्थकर होगा।" "अहा ! तब क्या होगा भन्ते ?" "होगा क्या, वह अमम तीर्थंकर तुम ही हो।" भगवान के इस अमृत वचन को सुनकर श्रीकृष्ण आनन्द के महासागर मे डूब गये । अपनी सम्पूर्ण शक्ति से गहन सिहनाद कर, प्रभु के चरणो की वन्दना कर वे लौट पडे । -अन्तकृत अग सूत्र
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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