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________________ २१४ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ कृष्ण गम्भीर हुए। वोले " इसका कारण क्या होगा, प्रभु । निमित्त क्या होगा ?" भगवान ने बताया " यादव - कुमारो से प्रताडित होकर द्वैपायन ऋषि कुपित होगे । उन्ही के द्वारा इस नगरी का विनाश होगा ।" कृष्ण की आशका सत्य ही निकली। कुछ क्षण विचार करने के बाद उन्होने दूसरा प्रश्न किया "क्या मैं भिक्षु वन सकूंगा, भन्ते ।" "नही, कृष्ण । तुम भिक्षु नही बन सकोगे ।" स्वाभाविक था कि कृष्ण इसका कारण जानना चाहते। उन्होंने पूछा -- " भन्ते । मै भिक्षु क्यो नही वन सकूँगा ?" भगवान ने इस प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट कथन किया "कृष्ण ! तुम वासुदेव हो । आज तक के मानव इतिहास मे किसी भी वासुदेव ने प्रव्रज्या नही ली, ले भी नही सकता और ले सकेगा भी नही । यह संसार का शाश्वत नियम है ।" श्रीकृष्ण और भी उलझ गये। सोचते-सोचते उन्होने फिर पूछा“भन्ते । ऐसी स्थिति मे यहाँ से जीवन का अन्त हो जाने पर मै कहाँ और किस रूप मे रहूँगा ?" सव कुछ जानने वाले भगवान ने शान्त, मधुर, सहज वाणी में कहा 1 "कृष्ण | यह द्वारिका नगरी जल रही होगी। सुरा और सुन्दरी के नशे मे डूबे हुए इस नगरी के यादव कुमार इस अग्नि में भस्म हो रहे होगे । उस समय तुम, बलभद्र और तुम्हारे माता-पिता यहाँ से निकलकर पाण्डवमथुरा की ओर जाओगे । उस समय मे वसुदेव और देवकी की मृत्यु हो जाने पर कौशाम्बी वन मे एक वृक्ष के नीचे लेटे हुए तुम्हारे पैर मे जराकुमार बाण मारेगा । उससे तुम्हारे जीवन का अन्त हो जायगा और तुम वहाँ से तीसरी पृथ्वी में जीवन धारण करोगे । उस समय बलभद्र भी तुम्हारे पास नहीं होगा, क्योंकि वह तुम्हारे लिए जल लाने गया होगा ।" श्रीकृष्ण गम्भीर व्यक्ति थे । किन्तु अपने इस दुखद भविष्य को जान
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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