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________________ २१२ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ प्रसन्न हुआ। उसने धन्य सार्थवाह को अपने गज्य मे नि शुल्क व्यापार करने की अनुमति प्रदान की। व्यापार द्वारा विपुल धनराशि अर्जित कर धन्य सार्थवाह अपने घर लौट आया ओर सुख मे अपना जीवन व्यतीत करने लगा। एक बार चम्पानगरी मे स्थविर भगवन्त का पदार्पण हुआ । बन्य सार्थवाह उनके उपदेश सुनकर प्रभावित हुआ और दीक्षा ग्रहण कर तप और धर्म का जीवन व्यतीत करने लगा । अन्त मे उसे सिद्धि प्राप्त हुई। मनुष्य के समक्ष दोनो मार्ग खुले पडे है । एक मार्ग उसे विनाश की ओर, विप की ओर ले जाता है तथा दूसरा मार्ग उमे मुक्ति की ओर, अमृत की ओर । मनुष्य को चाहिए कि वह अमृत का, मुक्ति का मार्ग चुने तथा जन्म-मरण के इस चक्र से सदा के लिए मुक्त हो जाय । ममार के कामभोग विपवृक्ष है। इनका त्याग करना ही उचित है। -ज्ञाता धर्म कथा
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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