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________________ २११ विष-वृक्ष सार्थवाह द्वारा पहले से ही चेतावनी दे दिये जाने के उपरान्त भी स्वाद-लोलुप कुछ लोगो की जिह्वा वश मे न रह सकी। उन लोगो ने उन वृक्षो के सुन्दर और मधुर लगने वाले फलो को खा ही लिया। इसी प्रकार कुछ लोगो ने सोचा कि केवल छाया में बैठने से क्या होता है ? ऐसी शीतल छाया मे तो अवश्य विश्राम करना चाहिए। यह सोचकर उन अभागे लोगो ने उनकी छाया मे ही विश्राम लिया। परिणाम अनिवार्य था। जिन-जिन लोगो ने उन वृक्षो के फलो को खाया अथवा उनकी छाया में विश्राम किया, वे सदा-सदा के लिए मृत्यु की शीतल छाया में विश्राम करने चल दिये । शेप जिन लोगो ने धन्य सार्थवाह की बात और चेतावनी पर ध्यान दिया था, जिन्होने अपने मन पर अधिकार रखा था, जिन्होने अन्य ही वृक्षो के फल खाये तथा अन्य ही वृक्षो के नीचे विश्राम किया था, वे सुखपूर्वक जीवित रहे। ससार के कामभोग उस नन्दीफल नामक वृक्ष के समान ही विषमय हैं। धर्म हमे निरन्तर यह शिक्षा देता रहता है कि हमे सयम से काम लेना चाहिए। अपनी इन्द्रियो को सयमपूर्वक कामभोगो से बचाना चाहिए । जो व्यक्ति यह जानते हुए भी अपनी इन्द्रियो के वश मे होकर सासारिक कामभोगो मे लिप्त और अनुरक्त हो जाते है, उन्हे अन्त मे वही परिणाम भोगना पडता है जैसा कि नन्दीफल नामक वृक्ष के फल खाने वालो को भोगना पड़ा। ऐसे व्यक्ति, निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी, गृहस्थ अथवा गृहस्थी, इन्द्रियो के वश मे होकर इस लोक में भी अनेक लोगो के धिक्कार के पात्र होते हैं तथा परलोक मे भी दुख पाते है। उन्हे अनन्तकाल तक चार प्रकार की गतियो में भ्रमण करना पडता है। दूसरे प्रकार के व्यक्ति जो सयम रखते है, वे इस भव मे अनेक श्रमणश्रमणियो तथा श्रावक-श्राविकाओ द्वारा पूजनीय होते है तथा परभव मे भी सुख प्राप्त करते हुए अन्त मे अनुक्रम से ससार-सागर के पार उतर जाते है । काफिला आगे बढ़ता गया । अन्त मे मजिल आ गई । अहिच्छत्र नगर के बाहर एक उद्यान मे पडाव डाल दिया गया । यथासमय मूल्यवान भेट लेकर धन्य सार्थवाह राजा कनककेतु की सेवा मे उपस्थित हुआ । राजा
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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