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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
"वन्धुओ | उस स्थान से आगे वडा विकट वन है । उस वन मे अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ है । मैं विशेष रूप से एक वृक्ष की ओर आपका व्यान आकर्पित करना चाहता हूँ । उस वृक्ष का नाम है - नन्दीफल । इस जंगल के मध्य भाग मे ये वृक्ष लगे हुए है। देखने में ये वृक्ष बहुत मनोहर है। उनका रंग-रूप सुन्दर और आकर्षक है । उनकी छाया भी अत्यन्त गीतल और सुखद है । ये वृक्ष गहरे हरे रंग के है और सवन है । पत्तो, पुप्पो तथा फलो से लदे हुए हैं । किन्तु आप लोग सावधान रहे, जितने आकर्षक ये वृक्ष है, उतने ही भयकर भी है । ये विपवृक्ष है ।"
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धन्य सार्थवाह की इतनी बात सुनकर सब लोग चिन्तित हुए । सार्थवाह ने आगे कहा
“इन वृक्षो से हमे सावधान रहना है। जो भी व्यक्ति असावधान होकर इन वृक्षो के पत्तो या फलो का भक्षण करेगा, इतना ही नही, जो भी व्यक्ति इनकी छाया मे बैठेगा, वह कुछ समय तो सुख का अनुभव करेगा, किन्तु अन्त मे उसकी मृत्यु निश्चित है । इसलिए मैं आप सबको पहले मे ही सावधान कर देना चाहता हूँ । कोई व्यक्ति इन वृक्षो के समीप भी न जाये ।"
काफिला आगे वढा । चलते-चलते वह उस जगल के ठीक मध्य मे आ पहुँचा, जहाँ पर मृत्यु के दूत वे नन्दीफल नामक वृक्ष लगे हुए थे । उन सुन्दर वृक्षो को देखकर कोई भी व्यक्ति यह कल्पना तक नही कर सकता था कि वे इतने भयानक होगे । उनकी शोभा देखते ही बनती थी । वे खूव हरे-भरे थे । सुन्दर फूलो और चित्त को आकर्पित करने वाले फलो से लदे हुए । उनकी शाखाएँ पवन में झूम-झूमकर यात्रियो को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी ।
इस संसार मे कुछ ऐसे व्यसन है जो मनुष्य को इसी प्रकार अपनी ओर आकर्षित करते है । सेवन करने मे वे मधुर प्रतीत होते है, किन्तु उनका परिणाम होता है विनाश |
ये वृक्ष और उनके फल भी ऐसे ही थे ।
धन्य सार्थवाह ने उन वृक्षो से कुछ दूर ही अपना पडाव डाला । किन्तु आगे बढकर जो स्वय ही विनाश को आमन्त्रित करे उसे कौन रोक सकता है
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