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________________ ५० विष- वृक्ष यदि कोई व्यक्ति जानते-बुझते हुए भी अपनी हानि करना चाहे तो उसे कौन रोक सकता है ? आँखे रखते हुए भी यदि कोई अन्धा बने और खाई मे गिरना चाहे तो उसे कौन रोक सकता है ? अपने ही पैरो पर स्वय ही कुल्हाडी मारने वाले को कौन रोक सकता है ? प्रसिद्ध चम्पानगरी की यह कथा है । पाठक इस नगरी से परिचित है । राजा जितशत्रु के विषय मे भी जान चुके है । उस नगरी मे एक सार्थवाह रहा करता था । उसका नाम था - धन्य । उस सार्थवाह के पास अपार धनराशि थी । दूर-दूर के देशो मे उसका व्यापार चलता था । घनधान्य एव ऐश्वर्य मे उसकी समता करने वाला कोई अन्य उस नगरी मे नही था । उसका जीवन आनन्द से व्यतीत हो रहा था । एक वार मध्यरात्रि को विचार करते-करते उसने व्यापार के लिए अन्यत्र जाने का निश्चय किया । इस बार इस प्रयोजन हेतु उसने अहिच्छत्र नगरी को चुना। यह नगरी चम्पा से उत्तर-पूर्व दिशा मे थी । बडी ही विशाल तथा समृद्ध नगरी थी वह भी । वहाँ कनककेतु नामक राजा राज्य करता था । राजा कनककेतु अत्यन्त गुणवान था । गुणी व्यक्तियो का बडा आदर करता था । हिमवन्त पर्वत के समान उसका आकर्षक तथा महान् व्यक्तित्व था । उसकी छत्रछाया मे प्रजा बडे सुख से रहती थी । अपने निश्चय के अनुसार धन्य सार्थवाह ने व्यापार के लिए अनेक २०८
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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