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________________ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ तुम चाहते तो अपना पैर नीचे रख देते और कप्ट न पाते । किन्तु उस छोटे से, भोले, असहाय, निरुपाय खरगोश पर तुम्हे करुणा उपजी । तुमने उस पर दया करके स्वय कष्ट सहन किया और अपना पैर अधर ही रखा । इस अनुकम्पा के माहात्म्य से तुम्हे मनुष्यत्व की प्राप्ति हुई । वह भयानक दावानल ढाई दिन तक सुलगा। पूरे समय तुम्हारा पैर अधर में ही रहा । दावानल की समाप्ति पर जब सब जीव वहाँ से चले गये तव तुमने अपना पैर पृथ्वी पर टिकाना चाहा । किन्तु इतने लम्बे समय तक अधर रहने के कारण वह सुन्न पड गया था । तुम उसे टिका न सके और धराशायी हो गये । तीन दिन तक उसी स्थिति मे निराहार पडे रहकर तुम मृत्यु को प्राप्त कर सम्राट श्रेणिक के पुत्र होकर उत्पन्न हुए । I हे मेघ । हाथी के जन्म मे इतना कष्ट सहा, उसका मुफल प्राप्त किया और अब मनुष्य होकर क्या इतने से कष्ट से घबरा जाओगे ? विचार करो । २०६ मुनि विगलित हो गये थे । प्रभु के चरणो मे वन्दन करते हुए “भगवन् | मै अज्ञानी इस सयमरत्न को कंकर मानकर फेक देना चाहता था । आपने पुन मेरे ज्ञान नेत्रो को खोल दिया है । मै आज से अपना जीवन प्राणीमात्र की सेवा मे ही व्यतीत करूँगा । प्रभो। एक बार मुझे क्षमा प्रदान कीजिए । " भगवान के मुखारविन्द पर वही दिव्य स्मित खिला हुआ था । वोले X X X मेघमुनि ने अपने सकल्प का पालन किया । अटल और अडिग साधना पूर्वक वे तपश्चरण एव ज्ञानाराधना मे लीन रहे । समय व्यतीत होता चला गया | भगवान के साथ विचरण करते-करते वे शीघ्र ही ग्यारह अग के पाठी हो गये । एक-एक दिन से लेकर छह-छह महीने तक उपवास धारण करके वे रहने लगे । उनका जीवन ज्ञान तथा चारित्र का एक सुन्दर उदाहरण ही बन गया । भगवान की आज्ञा प्राप्त कर उन्होने परिमाओ का सूत्रविधि से अनुष्ठान किया और तत्पश्चात् गुणरत्न सवत्सर करने की आज्ञा भी उन्हे प्रभु से प्राप्त हो गई। उनकी नित्य वर्धन पाती हुई शक्तियों को देखकर भगवान ने उन्हें ऐसी अनुमति प्रदान की ।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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