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शुभ संकल्प
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"माँ | तू मुझे सुखभोग करने को कहती है, किन्तु इन भोगो की अभिलापा क्या कभी पूर्ण भी होती है ? यह तो बढती ही चली जाती है । अत दुख न कर | मुझे सच्चे सुख और कल्याण के मार्ग पर जाने से न रोक ।" मेघकुमार को अपने निश्चय पर अटल देखकर भी राजा श्रेणिक ने एक बार फिर प्रयत्न किया
"बेटा । तुम कहते तो ठीक हो, किन्तु सयम अत्यन्त कठोर है । वह कॉटो का पथ है | अगारो की राह है । तुम कोमल हो। कैसे उस मार्ग पर चलोगे ? साधु-जीवन मे अनेक प्रकार के सकट पग-पग पर आते है । तुम कैसे उन सकटो का सामना करोगे ? जगल - जगल भटकना पड़ेगा । भूखप्यास, सर्दी-गर्मी सब सहन करने पडेगे । यह सब कुछ तुम कैसे कर सकोगे ?"
किन्तु मेघकुमार टस से मस न हुए । वीर पुरुष एक बार सकल्प करले तो फिर कौन उसे अपने सकल्प से डिगा सकता है
अन्ततः राजा-रानी को, अथवा कहिए कि माता-पिता को ही हार माननी पडी । लेकिन उन्होने अपनी अन्तिम इच्छा प्रकट की
“अच्छा पुत्र, जव तुम अपने निश्चय पर दृढ हो, तो तुम्हारा कल्याण हो । किन्तु हमारी एक इच्छा की पूर्ति करते जाओ । केवल एक दिन के लिए ही सही, तुम एक बार राज्य सिंहासन पर बैठो। हमारी आँखे कुछ तो तृप्ति का अनुभव करे । उसके बाद तुम साधु-जीवन मे प्रवेश करने के लिए स्वतन्त्र होगे ।"
पूज्य माता-पिता की यह आज्ञा शिरोधार्य करना मेघकुमार ने अपना कर्त्तव्य समझा । धूमधाम के साथ उनका राज्याभिषेक हुआ । शान्तभाव से मेघकुमार ने इस समायोजन को स्वीकार किया ।
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दूसरे दिन राजा मेघकुमार 'मेघमुनि' वन गये । माता ने अपने हृदय को स्थिर कर लिया था । उन्होने अन्तिम आशीप वचन कहे थे"मेघकुमार | मेरे वीर पुत्र । अव जव तुम सयम के मार्ग पर चल ही पडे हो तो सयम मे शिथिलता कभी न लाना ।"
भगवान ने दीक्षा के समय वचन कहे थे-
“भव्य ! अव से जीवन पर्यन्त तुम्हारा एक ही लक्ष्य रहना चाहिए ।
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