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________________ २०१ शुभ सकल्प यौवनकाल भी आया। मेघकुमार की देह अव पूर्ण चन्द्र के समान शोभित हो रही थी। उसके मुख पर एक नैसर्गिक शोभा छाई रहती थी। ऐसा प्रतीत होता था मानो शक्ति और स्वास्थ्य ने ही उसके अग-प्रत्यगो का निर्माण किया हो। राजा श्रेणिक ने समुचित अवसर जानकर आठ सुन्दरी, सुलक्षणा राजकुमारियो के साथ मेघकुमार का विवाह कर दिया। वे आठो राजकुमारियाँ अप्ट-सिद्धियो के समान मगलमयी थी। उनका प्रत्येक अग तो सुन्दर था ही, साथ ही वे विनय, नम्रता, लज्जा तथा शान्ति की मूर्ति प्रतीत होती थी। ____ मेघकुमार अपनी आठो पत्नियो सहित सुखपूर्वक समय व्यतीत करने लगे। ससार के प्राणियो को अहिसा धर्म के उपदेश द्वारा परम कल्याण का मार्ग बताते हुए भगवान महावीर एक वार राजगृही नगरी मे पधारकर गुणशील नामक उद्यान मे ठहरे । अनेक देशो मे विचरण करते हुए वे वहाँ पधारे थे । अनन्तज्ञान, परम करुणा. वीतरागता और कठोर तपश्चरण ही उनका जीवन था। प्रभु के आगमन का समाचार सुनकर सारी नगरी हर्षविभोर होकर उनके दर्शन और उपदेश-श्रवण हेतु उमड पडी। मेघकुमार ने भी अपने महल के गवाक्ष से यह दृश्य देखा, समाचार सुना और भगवान के दर्शन हेतु चल पडा। राजा भी गया, रानी भी गई, सेवक भी गये, सैनिक भी गये । भगवान के अमृत-वचनो ने लोगो की सूखी जीवन-सरिता मे अमृत वृष्टि का कार्य किया। उन्होने बताया कि जीव, अजीव, आत्रव, बन्ध, सवर, निर्जरा और मोक्ष का वास्तविक स्वरूप क्या है । जीव और कर्म का सम्बन्ध क्यो और कैसे होता है ? कर्मों के जाल में फंसकर जीव कैसे अनन्तकाल तक अनेक योनियो मे भटकता है। इन कमों से मुक्ति कैसे पाई जा सकती है? प्रत्येक श्रोता आज अपने जीवन को धन्य मान रहा था। घर बैठे गगा का आना शायद इसे ही कहा जाता है । गगा ही क्या, भगवान स्वय आज उनके पुण्योदय स्वरूप वहाँ पधारे थे। ___ अस्तु, उपदेश सुनकर अपने जीवन को कृतार्थ मानते हुए तथा अपनीअपनी शक्ति के अनुसार व्रत एव तपश्चरण के नियम लेकर लोग लौटे।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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