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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएँ
किन्तु जो असम्भव हे उसे सम्भव कैसे किया जा सकता है ? फिर भी उन्होने सारी बात उसे बताई।
सुनकर कुछ देर अभयकुमार ने विचार किया और फिर कहा
"पिताजी | आप चिन्ता न करे । मेरे रहते माता की यह अभिलापा अवश्य पूर्ण होगी।"
राजसभा भग हुई। अभयकुमार की प्रतिज्ञा में सभी को विश्वास था । फिर भी राजा मोचते थे-आखिर यह लडका करेगा क्या?
x धुन का धनी अभयकुमार आज तीन दिन से पौपवशाला मे निराहार, मौन, ध्यानमग्न बैठा था। उसकी मुखमुद्रा से स्पष्ट प्रतीत होता या कि चाहे अनन्तकाल व्यतीत हो जाय, किन्तु वह तव तक अपने आसन से हिलेगा नही जब तक उसके सकल्प की पूर्ति नही हो जाती।
देवलोक मे महाऋद्धिधारी एक देव ने अपने अवधिज्ञान से जानापृथ्वी पर उसका मित्र अभयकुमार उसे पुकार रहा है । क्षणभर मे ही अपने पुण्डरीक विमान मे बैठकर वह अभयकुमार के पास आ पहुंचा। अपना परिचय देकर उसने कहा
"मित्र । आपने मुझे स्मरण किया। कहो क्या आज्ञा है ?"
ज्यो ही अभयकुमार ने अपनी इच्छा प्रकट की, सारे आकाश मे कालीकाली घटाएँ उमड पडी। दिशाओ मे मेघो का गर्जन गुजायमान होने लगा। ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे वकाल अपने पूर्ण यौवन पर हो।
अभयकुमार की साधना सफल हुई और रानी धारिणी का दोहद पूर्ण हुआ।
सुखपूर्वक समय व्यतीत होता रहा और नौ मास पूर्ण होने पर महारानी ने एक सुन्दर वालक को जन्म दिया। प्रजा खुशी से नाच उठी। राजा ने याचको को मनचाहा दान दिया।
धारिणी के पुत्र का नाम रखा गया 'मेघकुमार'। द्वितीया के चन्द्र के समान वह बालक वृद्धि पाने लगा । इसकी देह की कान्ति अद्भुत थी।
आठ वर्ष का होने पर मेघकुमार को विद्याध्ययन हेतु आचार्य के पास भेजा गया और वह शीघ्र ही, अल्पकाल मे ही, सभी कलाओ और विद्याओ मे निष्णात होकर आश्रम से लौट आया।