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________________ ४६ शुभ संकल्प भारतवर्ष आज के समान दयनीय स्थिति मे सदा ही रहा हो, ऐसी बात नही है । किसी जमाने में भारत सोने की चिडिया कहलाता था । आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व का युग भी भारत की समृद्धि एव गोरव का युग था । उसी युग की यह एक कथा है । दक्षिण मे एक विशाल, अपरिमित वैभव और धनधान्य से परिपूर्ण नगरी थी - राजगृही । सम्राट् श्रेणिक उस नगरी मे राज्य करते थे । उनके राज्य मे केवल एक ही व्यक्ति ऐसा था जिसके हृदय मे कोई वेदना थी । और वह व्यक्ति था - राजा की ही रानी, धारिणी । 1 रानी धारिणी इसलिए दुखी थी कि उसकी गोद सूनी थी । किन्तु सदाचारी, धर्मनिष्ठ और सयमी व्यक्ति सदा ही कष्ट मे नही रह सकते । रानी धारिणी के भी पुण्यो का उदयकाल आ रहा था । एक रात उसने स्वप्न देखा - एक सुन्दर श्वेत हाथी उसके मुख मे प्रवेश कर रहा है | प्रात काल रानी ने राजा को अपना स्वप्न जब सुनाया तब राजा ने राज्य के श्रेष्ठ ज्योतिर्विदों को राजसभा मे बुलाकर इस स्वप्न का फलादेश पूछा । ज्योतिर्विदों ने विचार कर बताया "महाराज ! यह स्वप्न अत्यन्त मगलमय एव कल्याणकारी है । इसके फलस्वरूप रानी को नौ मास व्यतीत होने पर श्रेष्ठ पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी । वह पुत्ररत्न विस्तृत राज्य-सुख भोगने के उपरान्त अन्त मे ससार से १६८
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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