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________________ १६० महावीर युग की प्रतिनिधि कयाएं “रानी । अपना ही पुत्र है, जैसा भी है। जो होना है वह तो होकर ही रहेगा। चिन्ता न करो। उसे भी बैमा ही प्यार दो जैमा अभयकुमार को।” पुत्र पलते रहे। यौवन का आगमन होने पर कोणिक का विवाह आठ राज-कन्याओ के साथ कर दिया गया । वह रस-राग मे डूब गया । किन्तु कोणिक अधिक समय तक शान्त वैठा न रह सका। वह अब राजा बनना चाहता था। कैसे बने ? पिता जब तक स्वस्थ और जीवित है तब तक उसे राज्य कैसे मिले ? । अन्तत' उसने अपने वृद्ध पिता को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया-उसी पिता को, जिसने उसके जीवन की रक्षा की थी, पाला पोसा था, प्रेम दिया था वह भी सब कुछ जानते हुए। कोणिक राजा बन बैठा। अपने पिता को वह कडी कैद मे रखता था। उसमे कोई मिल भी नही सकता था। अपनी माता को भी उसने दिन में केवल एक बार पिता से मिलने की अनुमति दी थी। कोणिक की लिप्सा, अहकार और निष्ठुरता का इससे अधिक प्रमाण और क्या हो सकता था ? एक बार कोणिक अपनी माता से मिलने गया। यही उसके जीवन मे एक महान् परिवर्तन का क्षण था। माता उदास थी। उसने पूछा• माता । आप इतनी उदास क्यो है ?" माता का हृदय आज फट पडा । उमने बताया- "कोणिक । त् तो अन्धा है। तुझे मन्य दिखाई नहीं देता। तुझे नही मालूम कि तेरे पिता मम्राट् बिम्बसार तुझे कितना प्यार करते है। काश । त् यह जानने की कोशिश करता आर उनकी महानता को समझ सकता।” धीरे-धीरे गनी चेलना ने कोणिक को मारी बात बताई। उसके गन में आने से लेकर अब तक की। उन घटनाओ को मुन र कोणिक का हाय तत्क्षण वदल गया। उनकी गसमी प्रवति ममाप्त हो गई, जार उनले अन्तर का देवता प्रगट हो गया।
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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