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जागे तभी सबेरा
दो अलग-अलग दिशाओ मे चलने वाले दो पुत्र थे मगध के सम्राट विम्बसार श्रेणिक के। एक अभयकुमार और दूसरा कोणिक । अभयकुमार ज्ञानी, वोर. विनीत और बुद्धिमान था। कोणिक इससे बिलकुल उल्टास्वार्थी, अविनीत और निष्ठुर ।
किन्तु श्रेणिक पिता थे। उनके लिए लिए तो दोनो पुत्र दो आँखो के हो समान थे। दोनो प्रिय ।
कोणिक जब गर्भ मे था तभी उसके भावी जीवन की कल्पना हो गई थी। उसकी माता चेलना को दोहद हुआ था कि वह अपने पति के कलेजे का मॉस खाए। जिस पुत्र के गर्भ मे आने से ही उसकी माता की भावना इस प्रकार की बने, उसका जीवन कैसा हो सकता है, यह कल्पना कठिन नहीं है।
माता ने तो प्रयत्न भी किया कि ऐसे कुलक्षणी पुत्र का तो उत्पन्न न होना ही श्रेष्ठ है अत उसने गर्भ को गिराने का भी प्रयत्न किया। किन्तु सफल न हुई । जन्म के पश्चात् भी उसने नवजात शिशु को कुरडी पर फिकवा दिया । किन्तु होनहार को टाला नहीं जा सकता। कोणिक को कुछ कुकृत्य करने के लिए जीवित रहना था और वह रहा ।
किन्तु श्रेणिक सदा कोणिक को भी प्यार करते रहे। उन्होने चेलना से सदा यही कहा~
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