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________________ १८८ महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं “वटी । यह तू क्या कह रही हे ? पाँच शालि लाने के लिए तु मला गाडियाँ ओर छकडे क्यो मॉग रही है ? ठीक-ठीक और साफ-साफ बात कह।" बुद्विमती रोहिणी ने एक सच्ची गृहलक्ष्मी को शोभा दे ऐसी मन्द, मधुर और सलज्ज मुसकान बिखेरते हुए कहा "पिताजी । आपने मुझे उन शालि के दानो को सुरक्षित रखने तथा उनको वृद्धि करने का आदेश प्रदान किया था। अत. आपकी आज्ञा को शिरोधार्य कर मैने उन्हें अपने पिताजी के पास भेज दिया था। प्रतिवर्ष उन्ह खेत मे बोते और फसल काटते हुए अब वे शालि इतने अधिक हो गए हैं कि गाड़ियो और छकडो मे लादकर तया बोरियो मे भरकर ही उन्हें लाया जा सकता है।" श्रेष्ठि के मुख पर प्रसन्नता और आनन्द छा गया। उन्हें ऐसी ही बुद्धिमती पुत्रवधु की तलाश थी। सभी उपस्थित व्यक्तियो के समक्ष उन्होंने उमे गृह-स्वामिनी के पद पर प्रतिष्ठित किया और उनके इस निर्णय की सभी ने सराहना की। काश । हमारे देश के घर-घर मे एसी गृह-लदिमया होती। -ज्ञाता
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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