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________________ ४५ कः पन्थाः ? लोभ का कोई अन्त नही तथा विपय मृत्यु की ओर ले जाने वाले हे । किन्तु जब लोभ और विषय भोग की लालसा दोनों ही एक साथ किसी मनुष्य के जीवन मे आ मिले, तब तो उसका विनाश सुनिश्चित हो माना जाना चाहिए । लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व चम्पानगरी में जब राज कोणिक का शासन था तव वहाँ माकन्दी नामक एक सार्थवाह भी रहा करता था । उसकी पत्नी का नाम भद्रा था ओर उनके दो पुत्र थे- जिनरक्ष एवं जिनपाल । सार्थवाह धनाढ्य था । अटूट धनराशि उसके कोप मे जमा थी । उसके युवक एवं समर्थ पुत्रो ने भी ग्यारह बार लवण समुद्र को पार कर अनेक द्वीप द्वीपान्तरो मे जाकर व्यापार किया था ओर प्रचुर धन-सम्पत्ति अर्जित की थी । उस परिवार मे इतना धन था कि यदि वे बैठे-बैठे भी खाते रहते तो पीढियों तक वह धन समाप्त न होता । किन्तु दोनो भाई लोभ के वशीभूत हो चुके थे । वे ओर भी अधिक धन प्राप्त करना चाहते थे । अत उन्होंने अब बारहवी बार समुद्र यात्रा करने का निश्चय किया । माता-पिता ने बहुत समझाया कि बाहरवी समुद्र यात्रा शुभ नही होती, उसमे कष्ट एवं अनिष्ट की ही आशंका अधिक रहती है । ओर धनसम्पत्ति की कोई कमी नहीं है । अत यात्रा न की जाय । किन्तु दोनों पुनो १७=
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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