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चोर और साहूकार
मगध की राजधानी राजगृही मे धन्ना श्रेष्ठि रहते थे । उनकी पत्नी भद्रा तथा वे दोनो ही धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे । सम्पत्ति तो उनके पास अथाह थी । उसका सदुपयोग भी वे करते थे । उनके द्वार से कभी कोई याचक खाली हाथ नही जाता था ।
भगवान महावीर ने जिस नगरी मे चोदह चातुर्मास व्यतीत किए हो, उस नगरी के पुण्य का क्या कहना वह नगरी तो इन्द्र की अमरावती को भी पीछे छोड देती थी । उस नगरी मे अभाव थे ही नही ।
किन्तु श्रेष्ठ को कोई सन्तान नही थी । उनके तथा भद्रा के लिए यह दुःख हिमालय जितना बडा था । सब कुछ था, किन्तु जैसे कुछ भी नही था । अपनी सूनी कोख देख-देखकर भद्रा आठ-आठ आंसू बहाया करती थी । किन्तु उपाय क्या था ?
एक दिन भद्रा ने श्रेष्ठि से कहा" प्राणनाथ । सन्तान के
होता है।"
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अभाव मे अब तो जीना ही व्यर्थ प्रतीत
श्रेष्ठि ने अपनी पत्नी की पीडा को समझा ओर उसे आश्वासन देने के लिए बोले
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प्रिये । में तुम्हारे कष्ट को समझ सकता हू । में स्वयं भी इस अभाव के कारण कम दुखी या चिन्तित नही हु । किन्तु दु ख अथवा चिन्ता
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