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परीक्षा
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यह विस्मयपूर्ण वात देखकर सारा नगर हर्प और उल्लास से जयघोप करने लगा
'सती सुभद्रा की जय ।'
'जैन धर्म की जय ।' सुभद्रा को काई अहकार नहीं था । वह सदा की भाँति धीर, गम्भीर और प्रशान्त ही बनी रही।
उसके सास-ससुर-ननद लज्जित हुए। जैन धर्म को अगीकार कर अब वे गोरव से नगरजनो से कहते
"हमारी बहू साक्षात् देवी है । सती श्रेष्ठ है।'' सुभद्रा का पति भी पुन सद्धर्म मे खिचा चला आया। वह कहता"क्षमा नहीं करोगी, सुभद्र ? मुझ से बडी भूल हुई थी। पाप
.." सुभद्रा शान्त स्वर मे उत्तर देती“धर्म में श्रद्धा रखनी चाहिए, स्वामी । धर्म मे अश्रद्धा ही पाप है।"
हुआ