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परीक्षा
जीवन एक सग्राम है। इस जीवन-संग्राम मे जो वीर विजयी बनना चाहते है, उन्हे पग-पग पर कठिन परीक्षा देनी होती है ओर संघर्ष करना पडता है । इस सर्प और परीक्षा मे जो नर वीर उत्तीर्ण होते हैं, वे हो मनुष्यो की प्रसशा और पूजा के पात्र बनते है |
सुभद्रा एक ऐसी ही धर्मवीर महिला थी । विदुषी भी थी। अपने जैन धर्म मे उसे दृढ और अचल श्रद्धा थी । उसके पिता जिनदत्त चम्पा - नगरी मे रहते थे और उनकी यह प्रतिज्ञा थी कि अपनी गुणवती कन्या का विवाह वे किसी ऐसे ही युवक से करेंगे जो जैन धर्मावलम्बी होगा ।
सयोगवश सुभद्रा के रूप- गुण पर एक बौद्ध युवक मोहित हो गया । वह किसी भी मूल्य पर सुभद्रा से विवाह करना चाहता था । धीरे-धीरे सुभद्रा के गुणों से प्रेरित होकर तथा जैन धर्म की गहन उदात्तता से प्रभावित होकर उसने जैन धर्म अगीकार कर लिया ।
सुभद्रा का विवाह उस युवक से हो गया। वे दोनो सुखी थे । किन्तु सुभद्रा के सास-ससुर बौद्ध थे । इसलिए सास सदैव अपनी बहू मे दोप ढूंढने का ही प्रयत्न किया करती थी । उसे जैन धर्म से ही मूल मे द्वेष था ।
एक बार सास को नीचा दिखाने एवं अपमान करने का अवसर भी हाथ लग गया । यह दूसरी बात है कि सत्य और धर्मनिष्ठा के समक्ष उसकी एक न चली ।
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