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महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं श्रद्धा ओर एकनिष्ठ ध्यान से उन स्थविरो के पास ग्यारह अंगो का अध्ययन करने लगा। उसके व्यवहार मे पूर्ण विनय ओर भक्ति थी।
अतिमुक्त ने कठोर तप किया। सम्पूर्ण संयम का पालन किया। इस तप ओर संयम के कारण उसकी छोटी-सी कोमल देह धीरे-धीरे अशक्त हो गई, मुरझा गई।
गुण-संवत्सर तप की लम्बी साधना से तो देह ओर भी अधिक क्षीण हो गई । अतिमुक्त ने पीछे मुड़कर देखा ही नही। वह अपने तप के मार्ग पर निरन्तर अग्रसर होता ही चला गया । ओर अन्त मे विपुलगिरि पर सलेखना कर वह मुक्त हुआ।
-अन्त दृशा