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में भिक्षु बनूंगा!
पोलासपुर की नगर वोथियो मे एक भव्य व्यक्तित्व वाले मुनि एक घर से दूसरे घर मे भिक्षा लेते हुए चले जा रहे थे। उनका मस्तक उन्नत, विशाल और कान्तिमय था । चमकते हुए नेत्रो से प्रेम, करुणा ओर शान्ति की अजस्र वर्पा हो रही थी।
अन्य कोई नहीं, ये गणधर गौतम ही थे।
बहुत से वालक इधर-उधर अपनी बाल-क्रीडा मे निमग्न थे। किसी ने गौतम को देखा, किसी ने नहीं देखा।
___ किन्तु एक बालक ने उन्हे ऐसा देखा कि उसके जीवन मे से फिर वह व्यक्तित्व कभी निकल ही न सका।
वह बालक वडा सुन्दर, सुकुमार और तेजस्वी दिखाई देता था। गौतम को देखकर वह अपना खेल भूल गया। एक अज्ञात आकर्षण ने उसकी आत्मा को खीच लिया। अपने साथियो को छोडकर वह दोडा-दोडा गौतम के पास आया और पूछने लगा
"आप कौन है ?" गौतम ने मन्द मुसकान बिखेरते हुए कहा"मैं एक भिक्ष हूँ । बस, मेरा तो इतना ही परिचय है।"
किन्तु वालक की जिज्ञासा इतने उत्तर से शान्त नहीं हुई। उसने और पूछा
"तो आप क्या कर रहे है ? इन घरो मे क्यो घूम रहे है ?"