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________________ ४० निरुत्तर जमाली भगवान महावीर संसार त्याग कर लोक कल्याण की दृष्टि से धर्म का सदुपदेश देते हुए स्थान-स्थान पर विचरण कर रहे थे । उनके उपदेशो का प्रभाव ऐसा था कि उन्हे सुनकर लोगो को सच्ची आत्मिक शान्ति प्राप्त होती थी और वे धर्म की ओर उन्मुख हो जाते थे । एक बार वे विचरण करने हुए कुण्डलपुर पधारे। उनकी बहिन सुदर्शना का पुत्र जमाली भी उनका उपदेश सुनने गया । विद्वान् था | अनेक कलाओ तथा धर्म नीतियों का उसे समुचित ज्ञान था । भगवान का उपदेश सुनकर वह इतना प्रभावित हुआ कि अपने साथ के पाँच सौ क्षत्रिय कुमारो के साथ उसने भगवान से दीक्षा ग्रहण कर ली । उसकी पत्नी थी प्रियदर्शना । वह भगवान महावीर की पुत्री ही थी । जव उसने देखा कि पति ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली है, तब उसने भी पति के मार्ग का अनुसरण करना ही श्रेयस्कर समझा और अपनी एक हजार सहचरियों के साथ उसने भी दीक्षा ग्रहण कर ली । इस विशाल मुनि परिवार के साथ भगवान धर्मोपदेश देते हुए स्थानस्थान पर विचरण करते रहे । एक वार अनगार जमाली विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी मे पहुँच कर वहाँ तिन्दुक उद्यान में ठहरे। उस समय शरीर से वे बहुत दुर्बल हो चुके थे । अशक्ति इतनी आ चुकी थी कि चलना-फिरना तो दूर, वे बैठे भी नही रह सकते थे । अत उन्होने अपने शिष्यों से कहा १५७
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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