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महावीर युग को प्रतिनिधि कथाएँ
नही, किसी मे भी इतना साहस नही कि इन तीनो वस्तुओं का त्याग कर सके ?"
"केवल बढ़-बढकर बाते बनाना ही सीखे हो, लेकिन समय आने पर कुछ कर सको ऐसा तुममे से एक भी नही है ।"
" वस्तु छोटी हो या वडी, महत्व तो उस पर से ममत्व भाव हटाने का है । और यह कोई सरल बात नही है । सच्चे त्यागी ही ऐसा कर सकते हे, तुम लोगो के वश की वह बात नही है ।"
" जिस वस्तु का त्याग किया जा रहा है वह वस्तु प्रधान नही होती, इस बात को अच्छी तरह समझ तो आत्मा पर कालुष्य की पर्ते मत
त्याग की भावना ही प्रधान होती है । और किसी की निन्दा करके अपनी चढाओ ।"
"नागरिको । जिसे तुम दरिद्र ओर कंगाल कहकर उसके त्याग की खिल्ली उडाते हो, जरा उसके हृदय की पवित्रता के पुनीत वैभव को देखो । उसने अपने मनोविकारो का त्याग किया है । क्या तुम ऐसा कर सके ? क्या तुम ऐसा कर सकते हो ?"
निरुत्तर, लज्जित वे सब लोग वहाँ से चुपचाप खिसक गए। उन्हें अपनी भूल समझ में आ गई थी ओर वे जान गए थे कि त्याग का अर्थ क्या है |
- वरावैकालिक
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