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३८ कर्म-चक्र
चम्पानगरी के सोम, सोमदत्त और सोममूर्ति बन्धुओ की पत्नियां थी नागश्री, भूतश्री तथा यक्षश्री । एक दिन नागश्री ने भोजन बनाया। कडवी लोकी थी। नागश्री जानती नही थी । साग जो बना वह कडवा, विषमय हो गया। उसने वह साग जैन मुनि धर्मरुचि को बहरा दिया, जिसके कारण दयामूर्ति मुनि की मृत्यु हो गई।
लोगो को जब इस घटना का पता चला तब उन्होने नागश्री को बहुत धिक्कारा । उसके घर वालो ने भी ऐसी स्ती को घर में रखना उचित नहीं समझा और निकाल बाहर किया। अपने जीवन के अन्तिम समय मे आर्त एवं रौद्र के ध्यान के कारण वह मृत्यु पश्चात् नरकगामी बनी।
अनेक जन्मो मे इसी प्रकार भटकते हुए एक जन्म मे वह चम्पानगरी मे ही सागरदत्त की पत्नी भद्रा की कुंख से उत्पन्न हुई। उसका नाम सुकुमालिका रखा गया। नाम के ही अनुरूप वह सुन्दर ओर सुकुमार थी, किन्तु विपकन्या थी। उसके पूर्व जन्मो के कुकृत्यो के परिणामो ने अभी उसको छोडा नहीं था।
__उसका विवाह जिनदत्त सार्यबाह के पुत्र सागर से हुआ, किन्तु विपकन्या होने के कारण सागर ने उसका त्याग कर दिया। इसी प्रकार किमी दरिद्र व्यक्ति के माथ जब उसका विवाह किया गया, तो वह भी उसे गेट नागा।
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