________________
दीक्षा के पश्चात्-घोर उपसर्ग
१६ जहाँ महावीर ठहरते वह स्थान अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्गों से घिरा रहता। कही सर्प आदि जन्तुषों का उपद्रव, कही गीध आदि पक्षियों का उपद्रव, तथा कही चोर, बदमाश, गाँव के चौकीदार, और विषयलोलुपी स्त्री-पुरुषों का कष्ट । जिस शिशिर ऋतु मे हिमवात बहने के कारण लोगों के दाँत कटकटाते थे, बड़े बड़े साधु-संन्यासी निर्वात निश्च्छिद्र स्थानों की खोज करते थे, वस्त्र धारणकर वे अपने शरीर की रक्षा करना चाहते थे,आग जलाकर अथवा कंबल आदि प्रोढ़कर शीत से बचना चाहते थे, उस समय श्रमणसिंह महावीर खुले स्थानों में अपनी दोनों भुजायें फैलाकर दुस्सह शीत को सहनकर अपनी कठोर साधना का परिचय देते हुए दृष्टिगोचर होते थे।
अपने तपस्वी जीवन मे ज्ञातपुत्र महावीर ने दूर दूर तक भ्रमण किया और अनेक कष्ट सहे। वे बिहार मे राजगृह (राजगिर), चम्पा (भागलपुर), भद्दिया (मुंगेर), वैशाली (बसाढ़), मिथिला (जनकपुर) आदि प्रदेशों मे घूमे, पूर्वीय सयुक्तप्रान्त मे बनारस, कौशांबी (कोसम), अयोध्या, श्रावस्ति (सहेट महेट) आदि स्थलों मे गये, तथा पश्चिमी बगाल मे लाढ़ (राढ़) आदि प्रदेशों में उन्हों ने परिभ्रमण किया। इन स्थानों मे सब से अधिक कष्ट महावीर को लाढ़ देश मे सहना पडा। यह देश अनार्य माना जाता था और संभवतः यहाँ धर्म का विशेष प्रचार न था, विशेषकर यहाँ के निवासी श्रमणधर्म के अत्यंत विरोधी थे, यही कारण है कि महावीर को यहाँ दुस्सह यातनाये सहन करनी पड़ी। लाढ़ वज्रभूमि (बीरभूम) और शुभ्रभूमि (सिंहभूम) नामक दो प्रदेशों में विभक्त था । इन प्रदेशों की वसति (रहने का स्थान) अनेक उपसर्गों से परिपूर्ण थी। रूक्ष भोजन करने के कारण यहाँ के निवासी स्वभाव से क्रोधी थे और वे महावीर पर कुत्तो को छोड़ते थे। यहाँ बहुत कम लोग ऐसे थे जो इन कुत्तों को रोकते थे बल्कि लोग उल्टे दण्डप्रहार आदि से कुत्तों द्वारा महावीर को कष्ट पहुँचाते थे। वज्रभूमि के निवासी और भी कठोर थे। इस प्रदेश में कुत्तों के