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म. वी.
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उस स्वर्गमें अपने अवधिज्ञानसे पूर्व किये हुए तपका फल जानकर धर्ममें दृढ चित्त करके फिर भी धर्मकी सिद्धिके लिये तीन लोकमें स्थित जिनालयोंको तथा अर्हत गणधर मुनियोंको पूजकर व प्रणामकर हमेशा महान पुण्यका उपार्जन करता हुआ | तेरह सागरकी आयु पांच हाथका ऊंचा शरीर धारण करता हुआ। तेरह हजार वर्ष पीछे हृदयसे झरते हुए अमृतका सेवन करता था । साढे छह महीने बीत जानेपर सुगंधित | श्वास लेता था और नरककी तीसरी पृथ्वीतक उसका अवधिज्ञान तथा विक्रिया थी । सात धातु मल पसीना रहित दिव्य शरीरवाला वह देव सम्यग्दृष्टि शुभ ध्यानमें तथा जिनपूजा में लवलीन रहता था । नाचना गाना मधुर वाजे आदि सुखसामग्रियोंसे रात - | दिन देवियों के महान भोग भोगता हुआ । इस प्रकार सम्यक् दर्शन से शोभायमान चित्तमें शुभभावनाओंका चितवन करता हुआ सुखसमुद्रमें मन देवोंकर सेवित होता हुआ ।
अथानंतर जंबूद्वीपमें कौशलनामके देशमें सज्जनोंकर भरी हुई अयोध्या नामकी रमणीक नगरी है । शुभके उदयसे वहांका राजा वज्रसेन था और शीलसे शोभायमान शीलवती नामकी उसकी प्यारी रानी थी। उन दोनों के वह देव पुण्यके उदयसे स्वर्ग से चयकर हरिषेण नामका पुत्र हुआ । वह राजा पुत्रजन्मका महान उत्सव करता हुआ । वह हरिषेण कुमारअवस्थामें राजनीतिकी विद्याके साथ जैनसिद्धांतों को पढ़कर धर्मादि
पु. भा.
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