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मोक्षके सुखको देनेवाली है । तदनंतर वह कनकोज्ज्वलकुमार आर्तरौद्ररूप खोटे ध्यान व कृष्णादि खोटी लेश्याओंको छोड़कर बड़े उद्योगसे धर्मध्यान व शुक्ललेश्याको धारण करता हुआ। चारों विकथारूप वचनोंको छोड़ धर्मकथामें लीन हुआ सिद्धांतशास्त्रोंको पढता संता. धर्मोपदेश देता हुआ और ध्यानकी सिद्धिके लिये रागको उत्पन्न । करनेवाले स्थानोंको छोड़के गुफा वन · श्मशान पर्वत तथा निर्जनवनमें वह बुद्धिमान है। रहता हुआ।
वन ग्राम देश वगैर में ममतारहित विहारकरनेवाला वह मुनि कर्मोंके नाशकेलिये वारह प्रकारका तप अच्छीतरह आचरण करता हुआ। इसप्रकार वह मुनि सव मूल गुणोंको तथा यत्याचारशास्त्रमें कहे हुए संयमको मृत्युतक अच्छी तरह पालन करके मरणसमयमें चारों प्रकारके आहारको त्यागकर और अपने शरीरसे भी ममता छोड़ संन्यास धारता हुआ। १) वादमें आति धीरजसे भूख प्यासआदि परीषहोंको जीत और अपनी सामर्थ्यको प्रगटकर १ मोक्षलक्ष्मीके साधनमें उद्यमी होता हुआ प्रयत्नसे चारों आराधनाओंको सेवन करके वह निर्विकल्पचित्तवाला मुनि समाधिसमय धर्मध्यानसे प्राणोंको छोड़ता हुआ। उसके वाद :
तपस्याके प्रभावसे वह लांतवनामके सातवें स्वर्गमें महानऋद्धियोंवाला देव हुआ और ॐ वहां सुख देनेवाली अनेक संपदायें मिलीं।