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पुरुषार्थों को अच्छी तरह जानता हुआ। रूप लावण्य कांति दीप्ति वगैरः श्रेष्ठ गुणोंसे तथा उत्तम वस्त्राभूषणों से वह कुमार देवके समान सुंदर दीखने लगा ।
उसके वाद वह यौवन अवस्थाको पाकर बहुत राजकन्याओंको विवाहता हुआ | पिताकर दिये राज्यपदको प्राप्त हुआ अत्यंतसुख भोगने लगा । वह सम्यक्त्वकी शुद्धता| पूर्वक गृहस्थधर्मकी सिद्धिके लिये श्रावकोंके व्रत प्रमादरहित पालता हुआ । अष्टमी और चौदसको सब पापकायको छोड़ वह बुद्धिमान मुनिके समान होके मोक्षके लिये प्रोपध व्रतको आचरता हुआ । सवेरे शय्यासे उठकर धर्मकी वृद्धिके लिये पहले सामायिक ( जाप ) तथा स्तवनपाठ करता हुआ । पीछे साफ़ कपडे पहनके भक्तिसे अपने घर के जिनालय में धर्मअर्थकामरूप त्रिवर्गकी सिद्धिको देनेवाली देवपूजा करता हुआ । यो - ग्यकालमें भावोंसे सुपात्रको विधिपूर्वक दान देता था, मानकपाय आदिसे नहीं। जो दान माशुक है, स्वादिष्ट है. ।
20060020
संध्या के समय जितेन्द्री वह कल्याण होनेके लिये अपने योग्य सामायिक वगैरः श्रेष्ठ कार्य करता था । वह धर्मतीर्थ की प्रवृत्तिके लिये अंत केवली योगींद्र व मुनीश्वरों के महान संघ के साथ यात्राको जाता था । वह राजा उनसे रागके नाश होनेके लिये। तत्वों की चरचासहित श्रेष्ठ धर्म सुनता था । जो कि सुखका समुद्र है । वह धर्मात्मा