________________
कन्सन्छन्डन्न्न
देश है। वहां पर तीर्थंकरोंके चैत्यालय ऊंची २ धुजाओंवाले शोभायमान हो रहे हैं। वहां मुनि अर्जिका श्रावक श्राविका रूप चार प्रकारके संघसे विभूषित गणधरादिदेव सत्यधर्मकी ।
प्रवृत्तिकेलिये विचरते हैं इसलिये वहां कोई पाखंडी भेषधारी मिथ्यामती नहीं है । उस हजगह अर्हत् भगवानके मुखकमलसे उत्पन्न हुआ अर्थात् उनका उपदेशकिया हुआ
अहिंसास्वरूप धर्म फैलरहा है, उसको यति (मुनि) और श्रावक हमेशा पालते हैं। है। इसलिये उस नगरमें जीवोंको पीडा देनेवाला कोई नहीं है सभी धर्म पालते हैं । जिस जगह भव्यजीव ज्ञानके लिये ग्यारह अंग चौदह पूर्व श्रुतको हमेशा पढते हैं मनन करते। हैं जिससे कि अज्ञानका नाश हो परंतु कुशास्त्रोंका कभी नहीं स्वाध्याय करते । जिस लादेशमें क्षत्रिय वैश्य शूद्ररूप तीन वर्णमयी प्रजा सवः सुखी देखनेमें आती है धर्ममें , हमेशा लीन और बहुत भाग्यशाली है । जिस देशमें असंख्यात तीर्थकर व गणधर व
चक्रवर्ती और वासुदेव आदि उत्पन्न होते हैं जो कि देवोंसे पूजा किये गये हैं । जिस हादेशमें ५०० धनुष अर्थात् दो हजार हाथ ऊंचा शरीर और एक करोड़ पूर्वकी मनुष्योंकी,
आयु है वहां हमेशा चौथे कालका वर्ताव है। जहांपर उत्पन्न हुए महान पुरुष तपश्चर-है सणसे स्वर्ग अहमिंद्रपना तथा मोक्ष सिद्ध करते हैं तो अन्यकी वात क्या है सव कार्य है सिद्ध हो सकते हैं । उस देशमें पुंडरीकिणी, नाम नगरी है वह वारह योजन लंबी