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दूसरा अधिकार ॥२॥
सहन्छ
वीरं वीराग्रिमं वीरं कर्ममल्लनिपातने।
परीपहोपसर्गादिजये धैर्याय नौमि च ॥ १॥ भावार्थ-कर्मरूपी मल्लके हटानेमें बड़े योधा परीसहादि उपसगोंके जीतनेवाले IMS| श्री महावीरस्वामीको मैं धैर्यगुणकेलिये नमस्कार करता हूं ॥२॥
अव कथाका प्रारंभ करते हैं:___ असंख्यात द्वीप समुद्रोंवाले इस मध्यलोकमें राजाओंमें चक्रवर्ती समान जामुनके । क्षसे चिन्हित जंबूद्वीप है । उस जंबूद्वीपके बीचमें बहुत ऊंचा सुदर्शन नामका सुमेरु । पर्वत है वह देवोंमें तीर्थंकरोंके समान सब जगत्के पर्वतोंमें मुख्य है । उस मेरुकी पूर्वदिशाकी तरफ पूर्वविदेह क्षेत्र है, वह धर्मात्माओंसे और जिनेन्द्रदेवोंके समोसरणोंसे । अत्यंत शोभायमान है । उस क्षेत्रमें अनंत मुनि तपस्यासे देहरहित (मुक्त ) होगये हैं।
और होवेंगे इसीलिये उसका नाम गुणकी अपेक्षासे अर्थवाला विदेह-ऐसा है। आपमें स्थित सीता नदीके उत्तर दिशाकी तरफ पुष्कलावती नामका एक बड़ा भारी
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