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पु. भा.
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म. वी. और नौ योजन चौड़ी है । उसके एक हजार बडे दरवाजे हैं तथा पांचसौ छोटे हैं।
जिसमें महान् पुण्यवान् ही उत्पन्न होते हैं। वह नगरी जिनमंदिरोंकी धुजाओंसे Hमानों स्वर्गवासियोंको बुलाती ही है । उसके बाहर देखनेमें रमणीक मधुक नामका वडा 9 भारी वन है वहांपर मुनिलोग ध्यानमें लीन हुए विराजमान हैं इस कारण उस वनकी | शोभा अवर्णनीय है। .
उस वनमें पुरुरवा नामका एक व्याधाओं ( भीलों) का राजा रहता। S/ था वह बहुत भद्रपरिणामी था उसकी कल्याणकारिणी कालिका नामकी प्यारी
स्त्री थी। किसी समय उस वनमें जिनदेवकी वंदना करनेके लिये सागरसेन मुनि Ka आए । उनका संघ भीलोंने घेर लिया। उन मुनीश्वरको दूरसे देखकर हरिण सम.. ki झकर पुरूरवा, भीलने वाणसे मारनेकी इच्छा की, इतनेमें पुण्यके उदयसे उस भीलकी। स्त्रीने मारनेसे इनकार किया और कहा कि हे स्वामी ये जगत्को कल्याण करनेवालो। वनदेवता विचर रहे हैं इसलिये पापका कार्य तुमको नहीं करना चाहिये । उस · प्राण प्यारीके वचन सुनकर वह भील काललब्धिके ( अच्छी होनहारके ) आजाने पर प्रसन्नचि
से उन मुनीश्वरके निकट आकर अति हर्षके साथ मस्तक झुकाता हुआ (नमस्कार करता नया)। धर्मबुद्धि उन मुनिने भी उस भव्य भीलको ऐसा कहा कि हे भद्र श्रेष्ठ धर्मके ।
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