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________________ । ६६ । शुद्धाशुद्ध शब्द तक का है निनको नहीं विचार, लिखवाना है उनके करसे नए नए अखबार ।' और फिर मातृभापाद्रोहियों की सष्टि बन्द करने के लिए प्रार्थना की है ----- विधे ! मनोज्ञमातृभाषा के द्रोही पुरुष बनाना छोड़ २ मातृभाषाभक्त कवि हिन्दी-हितैषियों के प्रति भी अपने अाभार और प्रसन्नतासूचक मनोवेगों को व्यक्त किए बिना न रह मका--- तोसो कहाँ कछु कवे ! मम ओर जोवौ । हिन्दी दरिद्र हरि तासु कलंक धोवौ । इम प्रकार की रचनात्रों में काव्यकला का अभाव होने पर भी तत्कालीन संकटापन्न हिन्दी के पुजारी कवि के छलरहित हृदय की अमायिक और धार्मिक व्यञ्जना जीवनीमलक अालोचना की दृष्टि से अपना निजी सौदर्य रखती है। 'विनयविनोद', 'विहारबाटिका' आदि प्रारम्भिक अनुवादो मे उन्होने समर्थ साहित्यसेवी बनने की तैयारी की है । संस्कृत के महिम्नस्तोत्र' और 'गंगास्तवन' के अनुपम काव्य का आस्वाद केवल हिन्दी जानने वालो को कराने के लिए उनके हिन्दी-अनुवाद किए। 'ऋतुतरंगिणी' और 'देवीस्तुति-शतक' द्वारा संस्कृतयोग्य छन्दों में ही काव्यकथन करके देवनागरी भाषा के काव्यो की पुस्तकमालिका में 'गणात्मक वृत्ती के अभाव की पूर्ति करने का प्रयास किया। हिन्दी कविता मे कालिदास के भावो की अभिव्यक्ति का अादर्श उपस्थित करने के लिए 'कुमारसम्भव' का अंशानुवाद किया। मौलिक रचनाओं में उनके सहृदय कविहृदय की व्यंजना अनेक स्थलो पर बड़ी ही मनोहर हुई है। निम्नाकित पक्तिया में १. 'द्विवेदी-काव्यमाला', पृ० २६१ ॥ २. , , , " ३. 'द्विवेदी-काव्यमाला', पृष्ट २६२ । ४. 'महिम्नस्तोत्र' और 'गङ्गालहरी' की भूमिका के आधार पर । ५. 'ऋतु-तरंगिणी' और 'देवीस्तुतिशतक' की भूमिका के आधार पर । ६. " हिन्दी कालिदास की समालोचना' लिखने के अनन्तर जब किसी ने उनसे ये व्यंग्या त्मक शब्द कहे कि भला श्राप ही कुछ लिखकर बतलाइए कि हिन्दी कविता मे कालिदास के भाव कैसे प्रकट किए जाय तब नमूने के तौर पर द्विवेदी जी ने कुमारसंभव के प्रारम्भ के पाच सगों का अनुवाद कर 'कुमारसंभवसार' के नाम से प्रकाशित किया।" -पण्डित देवीप्रसाद शुक्ल , . सरस्वती', माग ४० प्रष्ठ २०३
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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