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प्राथन
आधुनिक हिन्दी-साहित्य की चार मुख्य विशेषताएँ हैं - १. काव्यभाषा के रूप में खड़ीबोली की प्रतिष्ठा और कविता के विषय, छन्द, विधान
तथा अभिव्यंजनाशैली मे परिवर्तन, २. गद्यभाषा के व्याकरणसंगत, संस्कृत और परिष्कृत रूप का निश्चित निर्माण, ३. पत्रपत्रिकाओं और उनके साथ ही सामयिक साहित्य का विकास, ४. हिन्दी-साहित्य के विविध अंगो-कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक, अालो
चना, गद्यकाव्य श्रादि-की वृद्धि और पुष्टि । इन सबका प्रधान श्रेय पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी को ही है और इसीलिए उनकी साहित्य-सेवा का मूल्याकन हिन्दी के लिए गौरव का विषय है ।
द्विवेदी जी की जीवनी और साहित्य-सेवा के विषय में 'हस' के 'अभिनन्दनाक', 'बालक' के 'द्विवेदी-स्मति-अंक', 'द्विवेदी- अभिनन्दन-ग्रन्थ', 'साहित्य-संदेश' के 'द्विवेदीअंक', 'सरस्वती' के 'द्विवेदी-स्मति-अंक' और 'द्विवेदी-मीमासा' तथा पत्रपत्रिकाओं में बिखरे लेखों में बहुत कुछ लिखा जा चुका है । परन्तु, उनमे प्रकाशित प्रायः सभी लेख प्रशंसात्मक और श्रद्धाजलि के रूप में लिखे गए हैं। समालोचना की दृष्टि से उनका विशेष मूल्य नहीं है । अतएव द्विवेदी जी की जीवनी, हिन्दी-साहित्य को उनकी देन और उनके निर्मित युग की वास्तविक अालोचना की आवश्यक्ता प्रतीत हुई।
द्विवेदी जी से सम्बन्धित प्रायः समस्त सामग्री काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा और दौलतपुर में रक्षित है । नागरी-प्रचारिणी सभा के कार्यालय में द्विवेदी-सम्बन्धी २८०१ पत्र और सभा को भेजा गया उनका हस्तलिखित 'वक्तव्य' है। सभा के 'आर्यभाषा-पुस्तकालय मे उनकी दस पाल्मारी पुस्तकें और हिन्दी, संस्कृत, बंगला, मराठी, गुजराती, उर्दू तथा अंगरेजी की सैकड़ों पत्रिकाओं की फुटकर प्रतियाँ हैं । सभा के कलाभवन में 'सरस्वती' की प्रकाशित और अप्रकाशित हस्तलिखित प्रतियाँ, उनसे सम्बन्धित पत्र, अनेक पत्रपत्रिकाओं की कतरनें, द्विवेदी जी का अप्रकाशित 'कौटिल्यकुठार' और उनके प्रकाशित ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियाँ हैं । दौलतपुर में 'सरस्वती' की कुछ प्रकाशित और अप्रकाशित प्रतियाँ द्विवेदी जी से सम्बन्धित कागदपत्र पत्र और उनके अप्रकाशित 'तस्योपदेश' और 'सोहागरात' हैं