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कोई अतर नही पडता १३ प्राचीन पडित और कपि १६१८ इ०, अन्य भाषानो के लेखा र आधार पर भवभूति
अादि प्राचीन कवियों और पंडितो का परिचय । १४. आख्यायिका-मातक.--.-१६२७ ई०, अन्य भाषाओं की आख्यायिकानों की छाया लेकर
- लिग्नित मात अाख्यायिकानों का संग्रह । मौलिक १. तरुणोपदेश-१८६४ ई० अप्रकाशित और दौलतपुर में रक्षित कामशास्त्र पर उपदेशात्मक
. ग्रन्य। २. हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की ममालोचना--१८६६ ई० । ३ नैपधचरित चर्चा--१६०० ई०, श्रीपलिग्वित 'नेषधीयचरितम्' नामक मंस्कृत-काव्य की
परिचयात्मक अालोचना। ४ हिन्दी कालिदास की समालोचना-१६०१ ई०, लाला सीतारामकृत 'कुमारसम्भव भाषा,
'मेघदूत भापा' और 'रघुवश भाषा' की तीन्दी
समालोचना। ५ वैज्ञानिक कोप--१६०१ ई० । - ६. नाट्यशास्त्र--१६०३ ई. में लिखित किन्तु १६१० ई० में प्रकाशित पुस्तिका । ७. विक्रमाकदेवचरितचर्चा--१६०७ ई०, संस्कृत-कवि बिल्हण के 'विक्रमाकदेवचरितम्' की
परिचयात्मक आलोचना । ८. हिन्दी भाषा की उत्पत्ति--१६०७ ई० । ६. सम्पत्तिशास्त्र----१६०७ ई० ।
इस ग्रन्थ में द्विवेदी जी ने सम्पत्ति के स्वरूप, वृद्धि, विनिमय, वितरण और उपयोग एवं व्यावमायिक बातो, सास्त्र, बेंकिग, बीमा, व्यापार, कर तथा देशान्तरगमन की विस्तृत व्याख्या
और समीक्षा की है । अंग्रेजी, मराठी, बंगला, गुजराती और उर्दू के अनेक ग्रन्थो से सहायता लेने पर भी उन्होंने मौलिक ढंग से विषयविवेचन किया है। अतिविस्तार, क्लिष्टता और जटिलता के भय से उन्होने सम्पत्तिशास्त्र-जातायो के वादविवाद की ममीक्षा नहीं की है और पश्चिमीय सिद्धान्तो को वहीं तक माना है जहाँ तक उन्हें भारतकेलिए लामदायक समझा है। अाज भी, हिन्दी-माहित्य के इतना आगे बढ़ जाने पर भी, द्विवेदी जी का 'सम्पत्तिशास्त्र' पूर्ववत् उपादेय और पठनीय है.। पदच्छिलानिष्ठुर, विकीम्लोलाग्निकणं सुरद्विष । जगत्पमोरप न चक्र
शिशुपालवध' मग १