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फाल्गुन म० १६४८ म समा ने द्विवेदी-अभिनदा मध का प्रकाशन निश्चित करने अपनी गुणग्राहकता और हृदय की विशालता दिखलाई | मामग्री एकत्र की गई इंडियन प्रेम ने ग्रन्थ को निःशुल्क छापकर अपनी मैत्री और उदारता का परिचय दिया । वैशाम्ब, शुक्ल ४, मं० १६६० को अभिनन्दनोत्सव सम्पन्न हुआ । अभिनन्दन के समय कुछ लोगों ने इम बात का भी प्रयत्न क्यिा कि द्विवेदी जी काशी न जाॉ और उत्सव असफल रहे । प्रत्येक विघ्न व्यर्थ सिद्ध हुआ । यही पर यह भी कह देना ममीचीन होगा कि श्यामसुन्दर दाम चाहते थे कि काशी विश्वविद्यालय द्विवेदी जी को डाक्टर की उपाधि दे । उत्सव के समय उन्होंने द्विवेदी जी से कहा कि श्राप अपना भाषण मालवीय जी की वक्तृता के पश्चात पढ़िए । अनुशासन-पालक द्विवेदी जी ने बिगड कर कहा कि यह कार्यक्रम में नहीं है। रामनारायण मिश्र से ज्ञात हुआ कि द्विवेदी जी के वक्तव्य का प्रभाव मालवीय जी पर अच्छा नहीं पड़ा ।' कदाचित् इसीलिए द्विवेदी जी को डाक्टर की उपाधि नहीं मिली।
अभिनन्दनोत्सव के समय द्विवेदी जी ने एक बन्द लिफाफा मभा को दिया था और श्रादेश किया था कि यह लिफाफा और पत्रों के कुछ बडल मेरे देहावसान के उपरान्त खोले जायें। सभा ने उनकी प्राजा का पालन किया । द्विवेदी जी का स्वर्गवास होने पर लिफाफा और बंडल खोले गए। लिफाफे में दो सौ रूपाए थे जो हि बेदी जी के निर्देशानुसार मभा के छोटे नौकरो वो पुरस्कार और वेतन के रूप में वितरित कर दिए गए २ द्विवेदी जी के पत्र सभा के कार्यालय मे अाज मी सुरक्षित है ।
जिस सभा ने द्विवेदी-कृत अालोचनात्रा की निन्दा की थी, मस्ता' का जनना हाकार भी जिसने उमसे अपना सम्बन्ध तोड देने का कठोर अादेश किया था और अपनी पत्रिका में सरस्वती' की कविता की 'मह' कहकर उसकी प्रतिकूल अालोचना की श्री. उमी ममा ने अपने बालोचक. दोपदर्शक महावीर प्रसाद द्विवेदी के अभिनन्दन की प्रायोजना की
और उसे सफलतापूर्वक सम्पन्न किया । माहित्य-देवता के एकान्त उपासक की यथोचित अर्चना करके उसने अपने को, द्विवेदी जी और हिन्दी-संसार को धन्य प्रमारित किया । जिम द्विवेदी जी ने एक दिन नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्ट की भयंकर अालाचना की थी अपनी टेक निभाने के लिये अनुमोदन का अन्त' बर के मभा और 'सरस्वती' का मम्बन्ध विच्छिन्न कर दिया था, सभा द्वारा दी गई चेतावनी, उसके पत्र और कोर मिद्धान्त
५ श्यामसुन्दरदास की 'मेरी कहानी', सरस्वती'. अगरत, १६४१ ई०. पृ० १४६ । २. जैकरों के लिए दातव्य पुरस्कार पर ही द्विवेदी जी ने इतना प्रतिबन्ध लगाया थायह बात
नही म चनी