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________________ और पद्य भाषा के परिष्कारक, निबन्धकार, आलोचक कवि शिक्षक अनेक रूपों में उनकी प्रतिभा का प्रसार हुअा। द्विवेदी जी ने खड़ी बोली को पद्य-क्षेत्र में भी आगे बढ़ाया। वे स्वयं बडे कवि न थे और न बडे उपन्यासकार और न नाटककार हो । अनुभूति की व्यापक्ता और गह्नता, कल्पना की सूझ तथा विचारों की गम्भीरता की भी द्योतक उनकी रचनाएँ नहीं हैं । । फिर भी द्विवेदी जी की कृतियो में प्रेरक शक्ति है, जीवन का सम्पर्क है और सुधारक तथा प्रचारक की सच्ची लगन है। ये ही विशेषताएँ उनकी रचनाओं को गौरव और महत्व देती हैं। हिन्दी साहित्य-क्षेत्र में द्विवेदी जी का इतना प्रभाव पड़ा कि उनकी साहित्य-सेवा का काल ( १६०१ ई० से १६२० ई० तक ) द्विवेदीयुग' के नाम से प्रख्यात हो गया। यह समय उस हिन्दी भाषा के विकास और उत्कर्षोन्मुखता का समय था जो अाज भारत की राष्ट्रभाषा है । भापा और काव्य को एक नये पथ की ओर प्रगति के साथ चलाने वाले सारथीरूप में द्विवेदी जी का कार्य महान है । वे वस्तुतः युगान्तरकारी सूत्रधार हैं । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, ठा० गोपालशरण सिह,पं० अयोध्या सिंह उपाध्याय, श्रीधर पाठक, सनेही', पूर्ण, शकर, सत्यनारायण कविरल अादि कवि और अनेक गद्यकार, सभी ने द्विवेदी जी से विषय, छ-द-प्रयोग और भाषागत प्रेरणा तथा शिक्षा ली थी। सरस्वती की फाइलों को देखने मे पता चलता है कि इम महारथी ने विवेचनात्मक, अालोचनात्मक, परिचयात्मक, श्रावेशात्मक, विनोद, व्यंग, अनेक प्रकार की गद्यशैलियों का अपने गद्य में प्रयोग किया। अपने लेखों द्वारा विविध गद्यशैलियो के उदाहरण उपस्थित किये और शब्द और मुहाविरों के प्रयोग द्वारा भाषा के दोषों का परिहार किया । इस प्रकार उन्होंने एक प्रांजल भाषा का श्रादर्श रूप लेखको के सम्मुख उपस्थित किया। वास्तव में, द्विवेदी जी की कृतियों और उनके 'रेनेंसौं' युग के अध्ययन के बिना अाधुनिक हिन्दी साहित्य के विकास का ज्ञान अधूरा ही रहता है। जिस समय मैने 'महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग' नामक विषय प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक डा० उदयभानु सिह को दिया, उस समय तक उक्त विषय का किसी लेखक ने गम्भीर अध्ययन नहीं किया था। डा० उदयभानु सिंह ने इस विषयकी बिखरी हुई सामग्री को बड़े परिश्रम के साथ इकट्ठा किया और उसे एक व्यवस्थित और मौलिक निबन्ध रूप मे प्रस्तुत किया, जो इस विश्व. विद्यालय में, पीएच. डी० की उपाधि के लिये स्वीकृत हुआ । यह ग्रन्थ लेखक के अथक परि श्रम और विस्तृत अध्ययन का प्रतिफल है डा. सिंह मेरी बधाई और शुभेच्छा के पात्र
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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