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________________ उपोद्घात आधुनिक हिन्दी भाषा के निर्माण में सबसे प्रथम महत्वशाली कार्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया था। उनके समय तक खडी बोली हिन्दी गद्य की भाषा बन चुकी थी परन्तु पद्य मे उसका प्रयोग बहुत अल्प था । भारतेन्दु ने अपनी अधिकाश पद्य-रचनाएँ ब्रजमाषा में ही की थीं। उनकी कुछ रचनाएँ नागरी लिपि में लिग्दी हुई सरल रेग्वता अथवा उर्दू-शैली मे भी हैं । गद्य में उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी का ही प्रयोग किया है। भारतेन्दु काल में, भारतेन्दु के प्रोत्साहन से और भी अनेक लेखक हुए जिन्होने आधुनिक हिन्दी भाषा का निर्माण किया, जैसे पं० प्रताप नारायण मिश्र, पं० बदरी नारायण प्रेमवन', पं० बालकृष्ण भट्ट, बा० बालमुकुन्दगुप्त, ला० श्रीनिवास दास, ठा. जगमोहन मिह, वा० तोताराम श्रादि । इन साहित्यनिर्माताओं ने भी पद्य में ब्रजभाषा का तथा गद्य में खड़ी बोली का प्रयोग किया । इनकी भाषा मे पृथक पृथक रूप से निजी गुण थे ।। पं० प्रताप नारायण मिश्र की भाषा मे मनोरंजक्ता, जनबोलियों की सरलता , और व्यंग्यात्मकता थी । 'प्रेमघन' जी, श्रालंकारिकता, अर्थगाम्भीर्य और समाम-पदावली के साथ लिखते थे । पं० बालकृष्ण भट्ट की भाषा सरल घरेलू शब्दा और व्यंग्यात्मक चुटकियों से युक्त होती थी। उस समय गद्य की अनेक प्रयोगात्मक शैलियाँ थीं। उस समय के साहित्यिक जीवन की प्रेरक और मार्गविधायिनी शक्ति भारतेन्दु के रूप में प्रकट हुई थी । भारतेन्दु का जीवनकाल बहुत अल्प रहा और उनका काम अधूरा ही रह __गया। गद्यका प्रसार तो भारतेन्दु के प्रयास मे हुआ परन्तु भाषा की उस समय, निश्चित, माकरण-मम्मत, और पुष्टशैली न बन पाई थी। अंग्रेजी भाषा का प्रभाव हिन्दी-शैली पर अव्यवस्थित रूप में ही पड़ रहा था। हिन्दी भाषा और माहित्य की उक्त पृष्ठभूमि में पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ( सन् १६०३ मे ) साहित्य-क्षेत्र में आए और उन्होंने इंडियन प्रेस में सरस्वती का सम्पादन अपने हाथ मे लिया। उनका साहित्य-क्षेत्र मे श्राना, हिन्दी खडोबाती के इतिहास में एक युगान्तर उपस्थित करनेवाली घटनाहुई थी। उनका आगमन मानो हिन्दी साहिन्य-कानन में बसन्त का आगमन था। उस ममय साहित्यिक जीवन में एक नवीन स्फूर्ति आ गई। उन्होंने लेखक और भाषा-शिक्षक दोनों रूपों में महित्य की मेधा की। दनना ही नहीं मम्पादक हिन्दी भाषा-प्रचारक. गद्य
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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