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उनकी अरसठवा व गॉट के समय किसी किसान सरसठ गाँठ मनाई इस पर द्विवेदी जी ने लिखा किसी किसी ने ६ मई १९३२ का सरसठवी ही वषगाँठ मनाई है । जान पडता है इन सज्जनो के हृदय में मेरे विषय के वात्सल्यभाव की मात्रा कुछ अधिक
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है | इसी से उन्होंने मेरी उम्र एक वर्ष कम बता दी है। कौन माता, पिता या गुरुजन ऐसा होगा जो अपने प्रेमभाजन की उम्र कम बताकर उसकी जीवनावधि को और भी आगे वढा देने की ठान करेगा ? अतएव इन महानुभावी का में और भी कृतज्ञ हूँ ।
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उनके सम्भाषण की प्रत्येक बात में अनोखापन और आकर्षण था । एक बार केशव प्रसाद मिश्र द्विवेदी जी के अतिथि थे । द्विवेदी जी के श्रागमन पर वे उठ खड़े हुए। reat जी ने हँसमुख भाव में उत्तर दिया-- विरम्यता भूतवती सपर्या निविश्यतामासनमुनिं क्रिम २
द्विवेदी जी बड़े स्वाभिमानी थे । श्रात्मगौरव की रक्षा के लिए ही उन्होंने दनों रुपयो की आय को ठुकरा कर तेईस म्पए मासिक की वृत्ति स्वीकार की । नागरी प्रचारिणी सभा मतभेद होने पर ममाभवन में गैर नहीं रखा। यदि किमो से मिलना हुआ तो बाहर ही मिले । बी० एन० शर्मा पर अभियोग चलाने का कारण उनका स्वाभिमान ही था । कमलाकिशोर त्रिपाठी की विवाह यात्रा के समय द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में एक विलायती साहब ने द्विवेदी जी से अपमानजनक शब्दों में स्थान खाली करने को कहा। उस अनाचार का उत्तर उन्होंने मिर्जापुरी उडे में दिया ।
हिन्दी कोविद - रत्नमाला के लिए २६१७-१८ ई० में श्यामसुन्दर दास के आदेशानुसार सूर्यनारायण दीक्षित ने द्विवेदी जी का एक सक्षिप्त जीवन-चरित तैयार किया और उसकी हस्तलिखित प्रति द्विवेदी जी को दिखाकर बाबू साहब के पास भेज दी । यत्र तत्र कुछ परिवर्तन करने के बाद अन्त में बाबूसाहब ने यह बहा दिया कि द्विवेदी जी का स्वभाव किंचित् उम्र है । जब द्विवेदी जी को यह ज्ञात हुआ तब वे आपे से बाहर हो गए। वस्तुतः इस उग्रता से उन्होंने बाबू साहब के कथन को चरितार्थ किया |
स्वाभिमानी और उग्र होते हुए भी वे ईश्वर में अटल विश्वास रखते थे । यद्यपि उन्होंने अपने को किसी धार्मिक बन्धनमें नहीं जकडा, दिग्वाने के लिए मन्ध्यावन्दनादि का पालन नहीं किया तथापि उनकी भगवद्भक्तिप्रधान कविताओ, विशेषकर 'कथमहं नास्तिकः' से
1 द्विवेदी- लिखित 'कृतज्ञना-ज्ञापन' 'भारत' २२ ५ ३२ ।
२ सरस्वती, भाग ४० म०२ पृ० १-६