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हारताकुर विज्ञापन बार-बहरिया आदि उपयुक्त पत्रिकाया क आकार प्रकार म सर कमी यी रचनाआ म गम्भारता या ठासपन न था गम्तयोजना और सम्पादकीय टियाणय मुपमा ओर मुन्दरता मे शून्य थी। इनमे मनोरंजन का माधन तो था परन्तु जानवर्धन के मामग्री बहुत कम थी।
५८६७ ई० में 'नागरी-प्रचारिणी-पत्रिका' ने हिन्दी-संसार में एक स्वर्णयुग का प्रारम्भ किया । उमने माहित्य, ममालोचना, इतिहास आदि पर गम्भीर, गवापरणात्मक और पाडित्य. पूर्ण लेख प्रकाशित हुए तथापि हिन्दी मे ऐमी पत्रिकाओं का भाव बना रहा जिनमें साहित्य, इतिहास, भूगोल. पुरातल्य, विज्ञान आदि विषयो पर उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक लेग्य तथा कविता, कहानी, अालोचना, विनोद आदि सब कुछ हो और जो हिन्दी के प्रभावों की सागोपाग यथायथ पूर्ति के साथ ही साथ पाठको और लखका को समानरूप से लाभान्वित कर सके। ऐम योग्य सम्पादकों की आवश्यकता बनी रहो जो निःस्वार्थ भाव में अपनी समस्त माधना द्वारा उपयुक्त उद्देश्य को सिद्ध करके विपन्न हिन्दी को सम्पन्न बना मके।
इसी उद्देश्य-पूर्ति की प्रतिज्ञा लेकर सरस्वती ( १६७० ई.) नई सज-धज में हिन्दाजगत में आई, परन्तु प्रथम तीन वर्षों तक अपना कर्तव्यपालन न कर सकी।
काव्य और तत्सम्बन्धी विषयोंके अतिरिक्त इतिहास, विज्ञान, ममाजनीति, धर्म, राजनीति पुरातत्व आदि को भारतन्दुयुग के साहित्यकारों ने माहित्य की सीमा में बाहर की वस्तु मान कर उम और कोई ध्यान नहीं दिया । भारतेन्दु ने 'काश्मीर कुसम'.१ बादशाह दर्पण' लिस्न कर इतिहास की और और 'जयदव की जीवनी' लिग्नकर जीवन चरित की ओर हिन्दीलेवका का यान आकृष्ट करना चाहा था। काशीनाथ म्वत्री ने भारतवर्ष की विख्यात स्त्रियों के चरित्र', 'यूरोपियन धर्मशीला स्त्रियों के चरित्र'. 'भात-भाषा की उन्नति किम विधि करना योग्य है',अादि अनेक पुस्तिकाएँ तथा लेख लिखे । वास्तव में द्विवेदी जी के पूर्व का विविवविषयक माहिन्य पत्रपत्रिकाओं में लेखा के रूप में ही प्रस्तुत किया गया । राजनीति. समाज, दश, ऋतुछटा, जीवन-चरित, इतिहास, भूगोल. जगत और जीवन में मम्बन्ध सबने वाले 'अात्मनिर्भरता', 'कल्पना' अादि विषय. नागरी हिन्दी प्रचार, हास्यविनोद आदि पर बहुविषयक रचनाएँ इन्हीं पत्रिकामों में ही समय समय पर प्रकाशित हुई । एकाध अपवादों को छोडकर वे उन्ही के साथ विलीन भी होती जा रही हैं। इन रचनाओ में ठोमपन और सार, अतएव स्थायित्व नहीं है । इनकी महत्ता बीमा पानी के विविधविषयक हिन्दी--माहित्य की भूमिकाम्प में ही है।
का मभश