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चतुभ अव प्रथम गर्भा संक्षिप्त- समाचार ( स्थानिक )
साधारण समाचार
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'हिन्दी प्रदीप' को छोड कर अधिक्तर पत्र 'ब्राह्मण' जैसे ही थे जिनकी ईक्ता ओर इयत्ता प्रतिनिम्न काटि की थी। पत्रिका की लेग्व-पति बहुधा सम्पादक द्वारा ही अपने या अन्य नामो से हुआ। करती थी । सामान्य लेखक भी विभिन्न नामों मे लेख लिखते थे । प्रचारप्रदान भावना के कारण लेग्यों में सार न था । विविध विषयों और लोकप्रवृत्ति की ओर ध्यान देने वाले 'ब्राह्मण' और 'हिन्दी प्रदाप' में भी इतिहास, पुरातत्व, विज्ञान जोवनचरित श्रादि पर सुन्दर रचनाओं के दर्शन नहीं हए ।
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इन पत्रों की मात्रा की तो और मा दुर्दशा थी । एक ही पत्र अलग अलग मात्रा में कई कालमों में छपता था, उदाहरणार्थ 'धर्म प्रचारक' हिन्दी और बंगला में तथा 'भारती - पदेशक' हिन्दी और संस्कृत मे । 'समाचार सुधाकर्षण' हिन्दी और बँगला में तथा 'कृषिकर हिन्दी और मराठी में अलग अलग प्रकाशित होते थे । उनके भाषा प्रयोग मनमाने हाते थ । व्याकरण की शुद्धि की ओर कोई ध्यान ही नहीं देता था । 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' का नाम और सुख पृष्ठ पर उसका विवरण तक गॅरेजी में थे । ब्राह्मण में स्थान स्थान पर कोठक मे ( education national vigour and strength, character ) ऋदि गरेजी शब्दों का प्रयोग मिलता है। फ़ारसी अरवी के किकरी के साथ ही साथ यावत मिश्या' और 'दरोग की विगाह' जैसे विचित्र प्रयोगों का भी दर्शन होता है । 'श्रानन्दकादम्बिनी' सम्पादक प्रसघन अपने ही उमडते हुए विचारो और भावों को व्यक्त करने क लिए समाचार तक अलकृत भाषा में छापते थे । 'नागरीनीरद' और 'श्रानन्द कादम्बिनी' के शीर्षक तक सानुप्रास रूपक के रूप में होते थे, यथा सम्पादकीय मम्मतिसमीर, हास्य-
१. किसी नाटक का जिसका नाम नहीं दिया ।
२ उनके सम्पादकीय सम्मतिसमीर का एक झोंका इस प्रकार है-
'' आनन्दकन्दनन्दनन्दन और श्री वृषभानुनन्दिनी की कृपा से नन्दकादम्बिनी के द्वितीय प्रादुर्भाव का प्रथम वर्षं किसी प्रकार समाप्त हो गया और आज द्वितीय वर्ष के आरम्भ के शुभ अवसर पर हम उस जुगुल जोड़ी के चरणकमलो में अनेकानेक प्रणाम कर पुनः आगामि वर्ष को मकुशल पूर्ण साफल्य प्राप्ति पूर्वक परिसमाप्ति की प्रार्थना करने में प्रवृत्त हुए है ।"
'श्रानन्दकादम्बिनी' मिर्ज़ापुर चैत्र २० १३*१