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लाट रिपन न (१८८८४ ई० ) लाइ लिटन 'दिनकर प्रकाश', ब्राह्मण', शुभचिन्तक दिवाकर', 'प्रयाग समाचार', 'कविकुल कंज दिवाकर', 'पीयूष प्रवाह', 'भारत जीवन', 'भारतेन्दु' आदि अनेक पत्रिकाओं का जन्म हुआ । 'ब्राह्मण' की विशेषता थी उसका फकडपन, व्यंग्य और हास्य | 'भारतेन्दु' की सामग्री विविधविषयक और रोचक थी । उसका प्रतिज्ञ वाक्य था - ' - 'कार्य वा साधयेय शरीर वा पातयेयम् ।
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राय का तर
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भारतेन्दु के उपरान्त 'भारतादय' (१८८५ ई० ), 'धर्म प्रचारक' (१८८५ ई०), 'श्रार्य मिद्धान्त' ( १८८६ ई०), 'श्रत्रवान्तोपकारक' ( '८६ ई०), 'कृपिकारक' (१८६० ई॰ ), 'हिन्दीपंच', 'उपन्यास ' ( १८६८ ई० ) आदि प्रकाशित हुए । उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में उपर्युक्त पत्रों के अतिरिक्त 'हिन्दी-बंगवासी', 'सुदर्शन', 'हितवार्ता, कट श्वर समाचार', 'छत्तीसगढ़ मित्र, कान्यकुब्जप्रकाश', 'रमिकपंच', 'काव्यामृतवपिणी', 'भारतभानु', 'बुद्धिप्रकाश', 'सुगृहिणी', 'भारतभगिनी', 'साहित्यसुवानिधि' श्रादि ने उत्तर भारत में पत्रों का एक जाल मा बिछा दिया ।
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भारतेन्दु, बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, बदरी नारायण चौधरी, किशोरी लाल गोस्वामी आदि अधिकाश हिन्दीलेखक सम्पादक थे। हिन्दी-प्रचारकों, राजनीतिशां, समाज सुधारकों, वट्टरपंथियों आदि ने अपने अपने मतों के प्रतिपादन और प्रचार के लिए ही पत्रपत्रिकाओं का सम्पादन किया । 'हिन्दोस्थान', 'हिन्दीपंच' यादि राजनैतिक; 'मित्रविलाम', 'श्रार्यदर्पण', 'भारतमुदशाप्रवर्तक', 'धर्मंदिवाकर', 'धर्मप्रचारक', 'अर्थसिद्धान्त' आदि धार्मिक; 'वोपकारक', 'क्षत्रियपत्रिका', आदि सामाजिक और 'कविवचनसुधा', 'हिन्दी प्रदीप', 'ब्राह्मण', नन्दकादम्बिनी' आदि साहित्यिक पत्र थे । साहित्यिक पत्रों में भी साहित्य का कुछ न कुछ अंश अवश्य रहता था । भगोल, विज्ञान यादि विशिष्ट विषयों की पत्रिका का प्रभाव था ।
सभी पत्रिकाओं की दशा शोचनीय थी । श्रार्थिक कठिनाइयों के कारण अधिकाश पत्रो
प्रेरितकलापि कलरव
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ertefiniकुर (मार )
प्राप्ति स्वीकार वा समालोचना सीकर ( मार )
नुवानाम्यवाद
'कादम्बिनी'
वली (मार ) मिर्ज़ापुर चैत्र स० १३६१