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तत्कालीन राजनैतिक, राष्ट्रीय, धार्मिक, सास्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक एव साहित्यिक आन्दोलनों ने हि दी लेखका को निवन्ध रचना की ओर प्रेरित किया उस युग से पकड हास्य-प्रिय, मिलनसार और सजीव लेखकों ने पाठकों के प्रति श्रभिन्नरूप और मुक्तकंठ से अपनी भावाभिव्यक्ति करने के लिए कविता, नाटक या उपन्यास की अपेक्षा निबन्ध को ही अधिक श्रेयस्कर माध्यम समझा । इस नवीन रचना की कोई ईटका या इयत्ता निश्चित न होने के कारण, आदर्श के प्रभाव में, स्वच्छन्दता-प्रेमी लेखकों ने इसके आकार और प्रकार को इच्छानुसार घटाया बढ़ाया और विषय तथा व्यक्तित्व से अतिरंजित किया । इस विधान में कहानी को भी स्थान मिला और दार्शनिक तत्व के विवेचन को भी । शैली की दृष्टि से लेखकों की अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग था । 'राजा भोज का सपना' ( राजा शिवप्रसाद ), 'एक अद्भुत पूर्व स्वप्न' ( भारतेन्दु ), एक अद्भुत पूर्व स्व'न' ( तोताराम ), 'थमपुर की यात्रा' (राधाचरण गोस्वामी ), 'आप' ( प्रतापनारायण मिश्र ) यदि निबन्ध इस बात के प्रमाण हैं ।
इस युग के निबन्धो में निबन्धता नहीं है, उद्देश्य या विषय की एकतानता नहीं है । 'राजा भोज वा सपना' में शिक्षा भी है, हास्य भी है। तोताराम के 'एक अद्भुत पूर्व स्वप्न' में हास्य, व्यंग्य और शिक्षा एक साथ है। कोई निश्चित लक्ष्य नहीं है । पाठशालाओं के चन्दा-संग्रही, पुलिस, कचहरी श्रादि जो कोई भी दाएँ-बाएँ मिला है उसी पर व्यंग्य बाण छोडा गया है। 'स्वर्ग में विचारसभा का अधिवेशन' में भारतेन्दु ने समाज की अनेक कुरीतियों पर आक्षेप किया है ।
हिन्दी गद्य के विकास के समानान्तर ही पत्र-पत्रिकाओं ने निबन्ध लेखन को प्रोत्साहन दिया । 'हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका' में 'कलिराज की सभा' ( ज्वालाप्रसाद ), 'एक अद्भुत अपूर्वं स्वप्न' (तोताराम ), आदि निबन्ध मनोरंजक और गंभीर विषयों पर प्रकाशित हुए । 'सारसुधानिधि' में प्रकाशित 'यमपुर की यात्रा', 'मार्जार - मूषक', 'तुम्हें क्या', 'होली' 'शैतान का दरबार' आदि में तत्कालीन सामाजिक और राजनैतिक दशाओं की मार्मिक व्यंजना हुई है । 'आनन्द कादम्बिनी' में 'हमारी मसहरी', जैसे मनोरंजक और 'हमारी दिनचर्या सरीखे भावात्मक निबन्धों के दर्शन होते हैं । विनोद प्रिय 'ब्राह्मण' ने विविध विषयों पर 'घूरे के लत्ता बीने, कनातन के डौल बॉधे', 'समझदार की मौत है', 'बात', 'मनोयोग', 'बृद्ध 'भौ' आदि निबन्ध प्रकाशित किए। 'भारत-मित्र' ने 'शिव- शम्भु का चिट्ठा' में रमणीय और सक्षम भाषा मे विदेशी शासन पर खूब फबतियाँ कसीं । स्पष्टवादी और तर्कशास्त्री 'हिन्दी- प्रदीप ' की देन औरों की अपेक्षा श्राधक ३ उसमें प्रकाशित साहित्य जनसमूह के