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ने अपनी ही माम, अनभूतिष की अभिव्यक्ति की है मगर मात्र का प्रभात वर्णन'.१ 'दमयन्ती का चन्द्रोपालम्भ'३ अादि अमौलिक निवन्ध हैं जिनमें क्रमशः 'शिशुपालवव' और 'पधीयच रित' के अंशानुवादरूप में भावनिवन्धना की गई है। विचारप्रधान भावात्मक निवन्ध भावोद्दीपक के समान ही विचारोत्तेजक भी हैं। इस प्रकार के निबन्धों में 'कालिदाम के समय का भारत', 3 'कालिदाम की कविता में चित्र बनाने योग्य स्थल', 'साहित्य की महत्ता'५ अादि विशेष उदाहरणीय हैं । भावात्मक निबन्धी की रीति संस्कृतशब्दबहुल तथा शैनो वक्तृतात्मक और कहीं कहीं चित्रात्मक या संलापात्मक भी है । कबिल्वप्रधान भावात्मक निबन्धों में माधुर्य और विचारप्रधान भावात्मक निबन्धी में अोज की प्रधानता है।
चिन्तनात्मक निवन्धो में मननीय विषयों का गम्भीर विवेचन किया गया है । शैली की दृष्टि से इन निबन्धों के तीन मुख्य प्रकार हैं-व्याख्यान्मक, आलोचनात्मक और तार्किक ! व्याख्यात्मक निबन्धों में लेखक ने पाठको को विस्तृत विवेचन द्वारा किसी विषय में भलीभाँति अवगत कराने का प्रयास किया है । ये निबन्ध मनोविज्ञान, अध्यात्म, माहिल्य आदि अनेक विषयो पर लिखे गए हैं । 'अात्मा', जान', 'कविकर्तव्य', 'कविता', 'ऋषि
और कविता', 'प्रतिभा',११ 'नाट्यशास्त्र १२ आदि विचारात्मक निबन्धों के इमी पकार के अन्तर्गत हैं । 'प्राध्यात्मिकी व्याख्यात्मक प्राध्यामिक निबन्धी का ही संग्रह है। द्विवेदी जी के ममस्त निबन्धों में उनके बालोचनात्मक निबन्धी का स्थान मबमे ऊंचा है क्याकि वे ही युगनिमीता द्विवेदी के व्यक्तित्व की मबमे अविक अभिव्यक्ति करते है । ये निबन्ध अालोचना की छः विभिन्न पद्धतियों पर लिखे गए है और तदनुसार उनकी गीतिशैली भी विभिन्न प्रकार की है। इसकी विस्तृत विवेचना 'बालोचना' अध्याय के अन्तर्गत की गई है। चिन्तनात्मक निबन्धा का तीसरा प्रकार तार्किक है । तार्किक निबन्धों में
* माहित्य-सन्दर्भ में संकलित ।
३. ४, कालिदास और उनकी कविता' में संकलिन । ५. सेरहवें हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के अवसर पर स्वागताध्यक्ष-पद से द्विवेदी जी के
भाषण का एक भाग! १. 'सरस्वती', १६०१ ई०, प.० १७ ।
८ १. ३०. रसज्ञरंजन' में संकलित ।
" 'सरस्वती' १६०२ ई पृ०२.२ ॥ १२ १६०३ ई में खिम्मित और " ई में पुस्तिकाकार प्रकाशित