________________
१५,
व्यामारदरण' ' अदभुत इ द्रजाल २ श्रादि लेखाजलि महिलामोद और अदभत अालाप' मे संकलित अधिकांश निबन्ध इमी प्रकार के हैं । अाधुनिक कहानियों का-सा वस्तुविन्यास, चरित्रचित्रण आदि न होने के कारगा ये निबन्ध कहानी की कोटि मे नहीं ना मकते । द्विवेदी जी के कुछ निबन्ध ऐसे भी हैं जिनमे वस्तुत: कथा का-सा प्रवाह और सारस्य है, यथा-'हंम-सन्देश',3 'हंस का दुस्तर दूत-कार्य'४ श्रादि। इनमें न तो कहानी की विशेषताएँ हैं और न भावात्मक निबन्धा की । अपनी वर्णनात्मक शैली और कथाप्रवाह के कारण ही ये कथात्मक निबन्ध हैं। अात्मकथात्मक निबन्ध की विशिष्टना है वर्णित पात्र द्वारा उत्तम पुरुप में ही अपनी कथा का उपत्थापन । भावात्मकता का बहुत कुछ पुट शने पर भी अपनी इमी विशेषता के कारण यह भावात्मक निबन्ध की कोटि में नहीं रखा जा मक्ता । 'दंडदेव का अात्म-निवेदन'५ इम शैली का एक उत्कृष्ट उदाङ्ग्ण है जिसमें दददेव के मुख से ही उनके मंक्षिप्त चरित का वर्णन कराया गया है।
द्विवेदी जी के चरितात्मक निबन्ध विशेष महत्व के हैं। हिन्दी साहित्य के प्रारिद्ववेदीयुगा मंक्षिप्त जीवनचरित लिखने की कोई निश्चित प्रणाली नहीं थी । प्रबन्ध-काव्या में नायकों के च रित अंकित किए गए थे। रेणावों की वातांया में धार्मिक महापुरुषों के वृत्तो का मंकलन किया गया था किन्तु उनमें ऐतिहासिक सन्य और कला की और कोई ब्यान नहीं दिया गया । यद्यपि द्विवेदी जी के पूर्व मी 'सरस्वती' में अनेक संक्षिप्त जीवनचरित प्रकाशित हुए तथापि उनकी कोई निश्चित परम्परा नहीं चली। द्विवेदी जी ने हिन्दीमाहित्य की इस कमी का अनुभव किया। उन्होंने पाश्चान्य मादित्य के सक्षिप्त जीवनचरिता के ढंग पर हिन्दी में भी जीवनचरित-रचना की परिपाटी चलाई । उन्होंने नियमित रूप में 'मरत्वनी मे निबन्धो का प्रकाशन किया । 'चरितचयाँ', 'चरितचित्रण', 'वनिता-बिलाम', 'सुकवि-मंकीर्तन', 'प्राचीन पंडित और कवि' आदि जीवनचरितो के ही संग्रह हैं। उनके दम क्रम के दो उद्देश थे-एक तो मनोरंजन और दूमग उपदेश, । यहाँ यह भी स्मरणीय है कि अधिकाश जीवनचरित सम्पादक द्विवेदी के लिये हुए हैं। पत्रपत्रिकात्रा के उस १. 'सरस्वती', १६०५ ई०, प.० १२ । २. , १६०६ ई. जनवरी । ३. ४. 'रसज्ञ-रंजन' में संकलित । ५. 'लग्वांजलि' में संकलित । ६ यथा- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-राधाकृष्ण दास- सरस्वती', १६०० ई०, प्रथम ५ संख्याय।
'राजा लक्ष्मण सिंह-किशोरी लाल गोल , प.० २०५, २३६ ।
'रामकृष्णगोपाल भंडारकर -श्यामसुन्दर दास ,, , २८ ! . इनमें शिधापहर करने की बहुत 3 सामग्री है परम्म यति इनसे विशेष लाभ