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1 श्रद हो ज ना पड़ता [ द्विवेदा जी ने अपने अध्यवसाय तथा मनोयोग से सरस्वती को सभी प्रकार के निवन्धो न सम्पन्न किया। निबन्धों के विषयों में अकस्मात् ही कितनी व्यापकता अागई, इसका बहुत कुछ अनुमान 'सरस्वती' की विषय-चूची से ही लग सकता है । द्विवेदी जी ने गारव्यायिका, प्राध्यात्मिक विषय, वैज्ञानिक विषय, स्लथनगर-जात्यादिवर्णन माहित्यिक विषय शिन्ना-विषय, प्रौद्योगिक विषय आदि ग्बंडा के अन्र्तगत अनेक प्रकार के निबन्धों की रचना का।
निबन्धकार द्विवेदी ने केवल अान्माभिव्यजक और कलात्मक निबन्धा की सृष्टि न करके इतने प्रकार के विषयो पर लेग्वनी क्यो चलाई--इमका उत्तर निबन्धकार के व्यक्तित्व, युग की अावश्यक तानी, पाठक-वर्ग की मचि की व्याख्या और इनके पारस्परिक भाबन्ध के निर्देश द्वारा दिया जा मकता है । द्विवेदी जी के आलोचक, सुधारक, शिक्षक श्रादि ने ही इन निबन्धा के विषयों का बहुत कुछ निर्धारण किया है। इस व्यक्तित्व मे अधिक महत्वपूर्ण उनका उद्देश ही है। अधिकाश निवन्धों की रचना पत्रकार द्विवेदी ने ही की है और उनका
धान उद्देश रहा ह मनोरं जनपूर्वक 'मरस्वती'-पाठको का जानवर्द्धन तथा मचिपरिष्कार । कलात्मक अभिव्यक्ति कही भी उनकी निवन्धरचना का साध्य नहीं हो सकी है। यजातरूप में अनायास ही जो प्रामाभिव्यंजना द्विवेदी जी के निवन्धी में परिलक्षित होती है वह उनकी निबन्धक रिता की द्योतक है। उनकी अधिकाश समीक्षानो. खडनमंडन, वादविवाद अाटि में इस निवन्धता का कलात्मक विकास नहीं हो पाया अन्यथा द्विवेदी जी के निबन्ध भी स्थायी माहित्य की मूल्य निधि होते। मामयिकता की रक्षा. जनता के प्रश्नों का समाधान और समाज को गतिविधि देने के लिए मार्गप्रदशन-इमने प्रेरित होकर द्विवेदी जी ने विभिन्न विषयों पर रचनाएँ की। सम्पादक-द्विवेदी ने पुस्तकपरोक्षा विविध-वार्ता आदि मंक्षित निबन्ध-मरीखी रचनाएँ भी की। माहित्यिक निबन्ध के अथ ग इन रचनाअं को निबन्ध नहीं कहा जा सकता।
मौलिकता की दृष्टि ने द्विवेदी जी के निवन्धा का मल विविध है-मामयिक पत्रपत्रिकाएँ तथा पुस्तके और स्वतन्त्र उद्भावनाए। 'सरस्वती' को भारतीय तथा विदेशी पन-जगत् के समकक्ष रखने तथा हिन्दी--पाठको के बौद्धिक विकास के लिए द्विवेदी जी ने अधिकाधिक मख्या में दृसरी का श्राशय लेकर अपनी शैली में निबन्धा की रचना को ! उन पर द्विवेदी जी की छाप इतनी गहरी है कि वे अनुवाद प्रतीत ही नहीं होते । 'कवि और कविता', 'कविता', कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता अादि निवन्ध इसी श्रेणी के
ये निवध रसन रजन म सकलित है.