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का माहित्य-वज्ञ', 'शूरवीर ममालाचक श्रादि व्यंग्यचित्र है। 'हिन्दी कालिदाम की ममालोचना', 'हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की ममानोचना' और 'कालिदास की निरंकुशता' पुस्तकाकार प्रकाशित हुई । 'नायिकाभेद', ४ 'हिन्दी-नवरत्न',” अादि अालोचनात्मक निबन्ध है । 'हे कविने ६ 'ग्रन्थकारलक्षण' । श्रादि कविताओं में भी पालांचना की प्रधानता है। 'भाषा-पद्य व्याकरण', आदि की अालोचनाएं पुस्तक-परिचय के रूप में लिखी गई थीं। इन श्रालोचनाओं के लेखकरूप में उन्होंने अपना नाम न देकर कल्पित नामों का भी प्रयोग किया है । 'समाचारपत्रों का विराट रू.प' के लेखक पंडित कमला किशोर त्रिपाठी और 'राम कहानी की ममालोचना'१० के श्री कंठ गठक एम० ए० हैं । टन अालोचनाओं की अभिव्यंजनाशैन्ती अपेक्षाकृत अधिक व्यंग्यात्मक, आक्षेपपूर्ण और कही कहीं हास्यमिश्रित है । ११ द्विवेदी-कृत ग्बद्धनात्मक, अालोचनाओं का कारण किमः प्रकार का ईयाद्वेष नहीं है । हिन्दी का सच्चा उपासक उसके मन्दिर मे किसी भी प्रकार का व्यभिचार नहीं देग्य मका है । इमोलिए उसमें कटुता आ गई है किन्तु वह सार्वत्रिक न होकर यथास्थान है । सच तो यह है कि हिन्दी-साहित्य के ढीठ चोरों और कलंककारिया की अमग ताति को गकने के लिए द्विवेदी जी-जम मैनिक ममालोच क की ही आवश्यकता
थी।
मंस्कृत-साहित्य में अालोचना का उन्कटतम रूप लोचनपति में दिखाई देता है। यह पद्वति पूर्वोक पाची पद्धतियों के अतिरिक्त काई पदार्थ नहीं है । अन्तर केवल इतना ही है कि इसम अालोचक अालोच्य विषय के अर्थ को पूर्णतया हृदयगम करके रचनाकार की अन्तदृष्टि की विशद ममीक्षा करता है । यह टीका-पद्धति में अनेक बाता में भिन्न है। टीका-पद्धति का क्षेत्र व्यापक किन्तु दृष्टि मीमित है । उमकी पहुँच काय, माहित्य अादि १. 'सरस्वती', १६०३ ई०, पृ. ४०६ । २. 'सरस्वती', १६०३ ई०, , २६५ । ३ पहल लेखरूप में 'सरस्वती' १६१२ ई. प० ,७५ और १०७ में प्रकाशित । ४ 'सरस्वती', १६०% ई०, पृ० १६५ । ५. ., १२ ई.,, ६६ ६. १६०१ , १६८ । ७.
. २५५ । , अगस्त १६१३ ई० । १. , १६०४ ई० पृ० ३६७ । १०. , १६.० ६. ई०,,. ४५० । १ क हिन्दी
भाग की
प०५ म्प 'भाषा और ' 'सरस्वती' माग , म० २ १०, भौर ।