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पांचवां अध्याय
अालोचना
पश्चिमीय साहित्य में ममालोचना का अर्थ किया जाता है रचना के विषय के इतिहास, सौदर्यमिद्वात्त. रचनाकार की जीवनी ग्रादि की दृष्टि से रचना के गुग्णदोष और रचनाकार की अन्तत्रु लियो तथा प्रवृत्तियों का सूक्ष्म विवेचन। सस्कृत-माहित्यकारों ने इम अर्थ में न तो यालाचना ही की है और न उम शब्द का ही प्रयोग किया है। हिन्दी में प्रचलित समालोचना, समालोचन, पालोचना और अालोचन एक ही अर्थवाचक शब्द है । ये शब्द संस्कृत के होते हुए भी अंगरेजी के 'क्रिटिसिज्म' के ममानार्थी हैं । समीक्षा और परीक्षा भी अालोचन के पर्याय हैं । 'क्रिटसिज्म' के लिए इन शब्दों के चुनाव का अाधार क्या है ? अपने "ध्वन्यालोकलोचन' में अभिनवगुप्तपादाचार्य ने लिखा है
"अपने लोचन (जान या मन) द्वारा न्यूनाधिक व्याख्या करता हुअा मैं काव्यालोक (वन्यालोक )को जनमाधारण के लिए विशद ( स्पष्ट ) करता हूँ ।”१
'चन्द्रिका" ( ध्वन्यालोक पर लिखी गई व्याख्या ) के रहते हुए भी लोचन के बिना लोक या ध्वन्यालोक का ज्ञान असम्भव है। इसीलिए अभिनवगुप्त ने प्रस्तुत रचना में (पाठको की ) प्रान्वें बोलने का प्रयास किया है।"
इन उदाहरणों में स्पष्ट है कि लोचान लोचक द्वारा भावक को दिया गया वह जानलोचन है जिसकी सहायता से बह लोचित रचना का उचित भावन कर सके । परीक्षा और ममीक्षा शब्द भी इसी अर्थ की पुष्टि करते हैं। संस्कृत के लक्षणग्रन्थों का नामकरण भी इसी अर्थ की भूमिका पर ग्रालम्बित दिखाई देता है। श्रानन्दवर्धन, मम्मटाचर्य, शारदा
यत्किंचिदप्यनुरणन्स्फुटयामि काव्य - लोक स्वलोचननियोजनयो जनस्य ।।
__ वन्यालोकलोचन', पृ० २ । किं लोचन बिना लगेको भाति चन्द्रिकयापिहि । तेनाभिनवगुप्तोऽत्र खोचना मोखन व्यधात् ।