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अहो दयालुत्वमत पर ि यथेति यद्रविण गृहीत्वा ।
निन्द्यraft rवं विमलीकरोषि तदीयकन्याकरपीडनेन ॥ १
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'गर्द'काव्य', 'बलीवर्द', 'सरगी नरक ठेकाना नाहि', जम्बुकी न्याय', 'टेस्, की टाँग आदि में अन्योक्तियो या अप्रस्तुनविधानों के द्वारा प्रस्तुत विषय का दास्यमिश्रित व्यंग्यपूर वर्णन है, उदाहरणार्थ --
सदसद्विवेकहीनता के कारण सुन्दर रचनाओं का बहिष्कार और अमुन्दर का स्वागत करने वाले सम्पादक का उपर्युक्त व्यंग्यशब्दचित्र बडी सफलता से अंकित किया गया है । गर्दभ में सम्पादक का आरोप करके लक्षणा के सहारे प्रभीष्ट भाव की मार्मिक अभिव्यक्ति की गई है। (हरी घास=सरस और सुन्दर रचनाएं, भूसा = नीरस रचनाएं, दाना सारगर्भित लेख यादि, चीथडे "= रद्दी रचनाएं मोहनभोग ग्रहणीय प्रिय वस्तु) । श्रादरणीय और महान् अभ्यागत के मानापमान का ध्यान न करनेवाले अभिमानी पुरुष के उपमानरूप Tata का स्वीकार भी सुन्दर हुग्रा है-
गज भी जो तुम उसकी ओर न आंख उठाते हो, लेटे कभी, कभी बैठे हो, कभी खड़े रह जाते हो | 3
निम्नाकित पंक्तियों में शब्द और अर्थ दोनो का चमत्कार लोकोत्तर है इन कोकिलकंठी कामिनियों ने जो मधुर गीत गाये, सुधासह कानों से पीकर वे मुझको अति ही भाये । इनका यह गाली गाना भी चित में जब यों चुभ जाता, यदि ये कहीं और कुछ गातीं विना मोल मैं विक जाता ||४
हरी घास खुरखुरी लगे अति, भूसा लगे करारा है, दाना भूलि पेट यदि पहुंचे काटे अस जस आरा है। लच्छेदार चीथड़े कूड़ा जिन्हें बुहारि निकारा है, सोई सुनो सुजान शिरोमणि, मोहनभोग हमारा है ॥
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द्विवेदी काव्यमाला', पृ० १८२ ।
२१६ ।
२७५ ।
४५१ ।
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