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________________ प्रवचन- ३ स्त्री बड़ी अद्भुत घटना घटी उनके साधना काल में; उनकी आवाज बदल गई, की सी आवाज हो गई । चाल बदल गई । वह स्त्रियों जैसे चलने लगे । उनके स्तन उमर आए और तब घबराहट हुई कि कहीं उनका पूरा शरीर तो रूपान्तरित नहीं हो जाएगा । कहीं उनका पूरा का पूरा लैंगिक रूपान्तरण न हो जाए । और उन्हें रोका उनके मित्रों ने, भक्तों ने । लेकिन वह उधर जा चुके थे । वह कहते थे कैसा पुरुष ? कौन पुरुष ? कौन रामकृष्ण ? वह तो अब नहीं रहा । साधना पूरी हो जाने पर भी छः महीने तक उन पर स्त्री के चिह्न रहे । छः महीने तक उनको देखकर लोग हैरान हो जाते थे कि इनको क्या हो गया ? अगर यह सम्भव है तो फिर अगर किसी ने उन्हें उन दिनों में देखा होगा तो वह लिख सकता है कि वह स्त्री थे । ६६ अब मेरे अपने ज्ञान में ऐसा है कि वह व्यक्ति स्त्री हो रही होगी जब वह साधना के जगत् में प्रविष्ट हुई लेकिन जो सावना चुनी वह पुरुष की साधना है । और उस साधना ने पूरा का पूरा रूपान्तरण किया होगा, न केवल व्यक्तित्व का बल्कि देह का भी । अब तो हम जानते हैं वैज्ञानिक ढंग से कि तीव्र मनोभावों से पूरी देह बदल सकती है । जिन्होंने तथ्य पकड़ा होगा उन्होंने देखा होगा कि वह स्त्री थी, तो स्त्री रही उनकी किताब में और जिन्होंने रूपान्तरण देखा होगा उनके लिए पुरुष हो गए । तथ्य को एकदम अन्धे की तरह पकड़ लेना खतरनाक है । सत्य पर नजर होनी चाहिए। तथ्य रोज बदल जाते हैं । यह तथ्य है कि आप पुरुष या स्त्री हैं किन्तु यह सत्य नहीं है । विल्कुल सत्य नहीं है । सत्य वह है जो नहीं बदलता । पुरुष-स्त्री हो सकते हैं और स्त्री पुरुष हो सकती हैं । बहुत गहरे में कोई आदमी अलग-अलग नहीं होता । स्त्री भी होती है, भीतर पुरुष भी होता है, मात्रा में फर्क होता है । जिसको हम पुरुष कहते हैं, उसमें ६० प्रतिशत पुरुष और ४० प्रतिशत स्त्री होती है । इसको हम स्त्री कहते हैं वह ६० प्रतिशत स्त्री और ४० प्रतिशत पुरुष होता है । यह मात्रा बहुत कम भी हो सकती है । यह बहुत सीमान्त पर भी हो सकती है। यह ५१ प्रतिशत जैसी स्थिति में भी हो सकती है । और अब जरा फर्क भिन्न का, और रूपान्तरण हो जाएगा। दो प्रतिशत की बदलाहट और पूरा व्यक्ति बदल जाएगा। लेकिन मनुष्य जाति को हमेशा बाधा पड़ी है इस बात से कि उसने तथ्यों को एकदम बिल्कुल अंधों की तरह जकड़ कर पकड़ लिया है। और तथ्य बड़ा झूठ बोल सकते हैं ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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