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महावीर : मेरी दृष्टि में
ऊपर आकाश में ठीक कहते हैं !
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खुले आकाश के नीचे और दूसरा कहता है मकान के भीतर । एक तीसरे आँख वाले गवाह ने जिसने खुद देखा था कहा कि दोनों ही ठीक कहते हैं । मकान अधूरा बना था। अभी सिर्फ दीवार ही उठी थी तारे थे— छप्पर नहीं था मकान पर। और ये दोनों ही आकाश में तारे थे और खुले आकाश के नीचे ही हत्या हुई । चारों तरफ दीवार थी और मकान था, वह भी सच है । जीवन बहुत जटिल है और एक ही तथ्य को हम बहुत तरह से देख सकते हैं और फिर दूसरी गहराई यह कि तथ्य जरूरी नहीं कि सत्य हो । सत्य कुछ और भी हो सकता है, तथ्य से विपरीत भी हो सकता है । लेकिन चूंकि हम तथ्यों को ही जाते हैं और सत्यों से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं, इसलिए अक्सर हम तथ्यों को पकड़ लेते हैं और तब मुश्किल में पड़ जाते हैं और बहुत कठिनाई पैदा हो जाती है ।
दद
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जैनियों के एक तीर्थंकर हैं । श्वेताम्बर मानते हैं कि वह स्त्री है, दिगम्बर मानते हैं कि वह पुरुष है । ऐसा झगड़ा हो सकता है एक व्यक्ति के सम्बन्ध में । यह झगड़ा भी हो सकता है दो परम्पराओं में कि वह स्त्री है या पुरुष । अब यह तो बड़ी सीघी तथ्य को बाते हैं । इनमें भी झगड़ा हो सकता है । लेकिन तथ्य बड़ा झूठा बोल सकते हैं, और जब कभी सत्य के विपरीत होता है तो कठिनाई पैदा हो जाती है। हो सकता है कि जिस तीर्थंकर के बारे में यह ख्याल है, वह स्त्री हा शरीर से । लेकिन तीर्थंकर हो ही नहीं सकता कोई व्यक्ति जब तक आक्रामक न हो, जब तक कि पुरुष-वृत्ति न हो, जब तक कि संघर्ष और संकल्प न हो। यह भी हो सकता है कि संघर्ष, संकल्प और आक्रमण ने पूरे व्यक्तित्व को बदल दिया हो । यह भी हो सकता है जब वह संन्यास लिया हो, स्त्री रहा हो, तो पुरुष हो गया हो । यानी मेरा मतलब समझ लेना कि यह पूरा परिवर्तन भी सम्भव है ।
ऐसा बभी रामकृष्ण के वक्त हुआ है । रामकृष्ण ने सारी साधनाएँ कीं, सब मार्गों से जाना चाहा कि वह मार्ग ले जा सकता है कि नहीं। तो उन्होंने ईसाइयों की सूफियों की, वैष्णवों की, भक्ति-मार्गियों की, योगियों की, हठयोगियों की, सब तरह की साधनाएं कीं, उससे उन्होंने एक सखी सम्प्रदाय की भी साधना की जिसमें व्यक्ति अपने को कृष्ण की स्त्री मान लेता है, परिपूर्ण भाव से सखी हो जाता है, गोपी बन जाता है, पुरुष भी हो तो भी । वह रात को कृष्ण की मूर्तिसाथ लेकर सोता है पति की तरह, पत्नी होकर । रामकृष्ण ने समग्रभाव से स्वीकार कर लिया और कुछ महीनों तक उन्होंने स्त्रीभाव की कामना की ।