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महावीर : मेरी दृष्टि में देते तो शादी रुक सकती थी । लेकिन ना तक भी न की होगी । आदमी इतना पूरा था कि ना करने तक का उपाय न था । ठीक है। स्त्री आती है तो आए, न आती है तो न आए। ये दोनों बातें अर्थहीन हैं । अन्य घटनाओं से भी लगता है कि यह बात सच रही होगी ।
की, कि मैं संन्यास
ऐसे बेटे हैं उनके,
महावीर ने आज्ञा चाही है पिता से कि मैं संन्यासी हो जाऊँ । पिता ने कहा- मेरे रहते नहीं । मैं जब तक जीवित हूँ तब तक तुम बात ही मत करना दुवारा । और महावीर चुप हो गए। अद्भुत आदमी रहा होगा । जिसको संन्यास लेना हो वह ऐसा काम करे कि आज्ञा माँगे ! पहली बात यह कि जिसको संन्यास लेना हो वह आज्ञा क्यों माँगे ? संन्यास का मतलब हो यह है कि मोह-बंधन तोड़ रहा है । संन्यास की भी आज्ञा मांगनी पड़ती है ? जैसे कोई आत्महत्या करने की आज्ञा मांगे कि मैं आत्महत्या करना चाहता हूँ, आप आज्ञा देते हों ? तो कौन आज्ञा देगा ? संन्यास को कभी आज्ञाएँ दी गई हैं, संन्यास लिया जाता है । और महावीर ने आज्ञा मांगी संन्यास ले लूँ । कौन पिता राजी होगा और महावीर जैसे बेटे का ? और पिता संन्यास के लिए राजी हो जाए ? महावीर जैसे बेटे का कोई पिता राजी होगा संन्यास के लिए ? इन्कार किया होगा और कहा होगा कि मैं मर जाऊँ तब यह बात करना, यह बात ही मत करना मुझसे । और मजा यह है, घटना यह है कि यह लड़का तो बहुत अद्भुत है, यह चुप हो गया और फिर इसने बात हो न को । निश्चित ही संन्यास लेने या न लेने से कोई बुनियादी फर्क न पड़ता होगा इसको । इसलिए जोर भी नहीं है कोई कि ठाक है, नहीं भी हुआ तो भी चलेगा। पिता मर गए तो मरघट से लौटते वक्त अपने बड़े भाई से कहा कि मुझे आज्ञा दे दें। अब तो पिता चल बसे, मैं संन्यासी हो जाऊँ । बड़े भाई ने कहा तुम पागल हो गए हो । एक तो पिता के तुम अभी मुझे छोड़कर चले जाओगे । और घर भी नहीं पहुँचे, वह भी अभी रास्ते पर । मुझसे यह बात कभी मत करना । तो बड़ी मजेदार घटना है कि महावीर ने फिर यह बात ही नहीं की। फिर वह घर में ही रहने लगे । लेकिन थोड़े ही दिनों में घर के लोगों को पता चला कि महावीर जैसे नहीं हैं । हैं घर में, और नहीं है। उनका होना न होने के बराबर है । न वे किसी मार्ग में आड़े आते हैं, न वे किसी की तरफ देखते हैं; न, कोई उन्हें देखे, इसकी आतुरता रहती है । वे ऐसे हैं जैसे उस बड़े भवन में अकेले हैं, जैसे कोई है ही नहीं । कोई उनसे पूछे, 'हाँ और ना' में जवाब माँगे तो भी नहीं देते। किसी पक्ष:
का दुख ओर
मरने